रामायण कथा | Ramayan Katha
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)স্পা
सदस्यों, उसके नेता पं० जवाहरलाल नेहरू, उपनेता श्री हरेकृष्ण मेहताव तथा
सुरेन्द्र मोहन घोष का सहज स्नेह प्राप्त होता रहा-1 जिनकी भावना और विचारो
का आदर कर कांग्रेस की पुरानी परम्परा का समिति ने निर्वाहं किया है 1 .सरकारी ,
नीति को, मुख्यतः चीनी आकरमण-काल मे, प्रभावित किया है। यह एक ऐतिहासिक
घटना है । भारतीय राजनीति नवीन प्रेरणा तथा उत्साह के साथ मोह पैदा
करनेवाली रही है । अतएव, कायंकारिणी के सदस्यों को, जिनके कथो पर भारतीय
राष्ट्-नीत्ति, लोकतत्रीय आलोचना त्था सजग-सतकेता का भोर है, रामायण की
यह गौरव-गाया भेट करने मे गवं का अनुभव करता हं जौर विश्वास है कि इस
लौकतंत्रीय स्वस्य, निर्भीक, गौरवपुणं परस्परा की जो आधारशिला इस समिति
ने रखी है, उसे आनेवाली समिति तथा सदस्य प्रंगति-पय'की गोर बढते रहेगे। `.
राष्ट्रपति श्री राधाकृष्णन जी का स्नेह जपने विद्याथियो पर अक्षुण्ण बना
रहता है। उनके विद्यार्थी अनेक राजनीतिक दलों मे हं । उनके सम्मृख भने पर
श्रद्धा से मस्तक शुक जाता है । उनका गुरुवत् तथा पितृवत् वात्सल्य भाव प्रदर्च॑न `
के समय सव कुछ मूल जाया करता है । प्रारम्भ से ही मे काशी विश्वविद्यालय का
विद्यार्थी रहा । वहाँ उन्होने अपने जीवन के ६ वर्ष सरस्वती तथा विश्वनाथ की
आराधना मे व्यतीत किये हूँ । संसद् में आने पर राष्ट्रपति होने पर भी उनके स्नेह
तथा व्यवहार में किचित् मात्र अन्तर नही हुआ है । इस प्रकार वे स्वयं राष्ट्र के
साथ-ही-साथ भारतीय परम्परा के प्रतीक बन गये है । उनसे सर्वदा प्रेरणा मिलती
है । उन्होंने समय निकाल उपोद्घात लिखा है-। उसके लिए मै उनका कृतज्ञ हं
श्री सत्यनारायण सिहजी से मेरा ३० वर्षो का परिचय है । वे भारतीय
मंत्रिमंडल में संसदीय कार्य मंत्री हैं । रामायण के अध्ययन में वे रम-से गये हैँ ।
रामायण का प्रसंग उठते ही वे उसमें जैसे डूब जाते हैं । इससे भी बड़ी वात उनमे
है--उनकी निरछलता। राजनीति और निरछलता परस्पर विरोधी कहे गये है ।
परन्तु, श्री सत्यनारायण सिंह मे निशछलता की झाँकी लेकर वे ही इसका आनन्द
उठा सकते है, जिन्हे उनके समीप रहने का अवसर मिला है । उनका एक सबसे बडा
गुण है कि वे किसी का अनभल नही कर सकते । अपकार करना उनकी प्रक्ृति के
प्रतिकूल है । यदि वे चाहे भी कि किसी को कष्ट दें, तंग करें, किन्तु उनका मौलिक
स्वभाव ऐसा है कि वे उसे करने में अनायास असमर्थ हो जाते है। उनसे लड़ने में,
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