शिक्षा प्रद पत्र | Shiksha Prad Patar

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Shiksha Prad Patar by श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६३ शिक्षाप्रद पथ समझ्चा, सो इस प्रकार छ्केकी मृत्यु होनेपर चिन्ता-फिक विल्युछ ही नहीं करनी चाहिये | छग़केका जन्म भर उसकी मृत्यु प्रारन्धवश ही दोते हैं । जन्ममें दप और मृत्युमें दुःख करना यद्द জ্বাল হী ই | হত अब्भानरूपी अन्धकारकों विवेकरूशी प्रकाशसे दूर फरना चाहिये ! छड़केके मरनेपर चिन्ताकी तो कोई बात है ही नहीं ! भगवानने अपनेय्धे नो चीज परोदररूपमें दी थी, ठसे वापस ले डिया अयवा दूसरे शब्दो्में मगवान॒की चीज मगवानके पास्त चछी गयी, ऐसा ही समझना चाहिये | चिन्ता-फिक्र करनेकी तो बात ही क्या है! हाँ, मृतक भात्माकों शान्ति मिले, इसके ल्ि मजन-भ्यान एषं भगवषानसे स्मुति-प्रार्थगा अकशय करनी चाहिये ! प्रमुका नाम छेते-लेते तमहं प्रह दिन हो गये, पिं श्यन्ति नहीं मिरी, सो माम करिया । श्रद्धा-विश्वास, प्रेम और मनसे मगवानूका नाम लेना चाये तथा मगवानूसे स्पुति-प्रर्पना करनी चाहिये; तमी शान्ति मिक सकती है । अमी श्टरीरफा मोह छिखा, सो शरीरम मोह नष्ट करना चाहिये; यदी अरान्तिका कारण है । घनन्यमायसे श्रदा-मप्ूर्यक नित्य-निरन्त्‌ भगवानु मजन-ध्यानर्मे लग नाना चाहिये | तुम ठंडे जलसे स्नान नहीं कर पाती हो तो कोई बात नहीं है, स्नान गर्म पानीसे कर लेना चाहिये। पर स्नान रोज करना चाहिये ! सरदी-जुखाम, बीमारी जादियें स्नान न द्वो तो बात दूसरी है । पुम पिस्तरपर छेटे-लेटे नामजप करती दो सो অই बात न




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