उत्तमी की माँ | Uttami Ki Maa
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
115
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)কলদী কলা] ११
पर बाद में हमें कोई दोद न दे | हमें घपनी सड़की की भो तो दादी करनी
हैं “1” और उपने जमकिश्वन के समुत में आप एक सो एक रपये और नारियत्त
सोडा दिपा 1
छतवो की मां में सिर पीट कर छाहा--/““अगर ऐसा ही या, तो हमें
झा: महीने का समय ठो दिया द्वोता । में मरान गिरयो रख कर ही सड़कों का
भ्पाह् कर देतो भव षद विरादरी में दुह्मई देती वो इत्त बात की डोदी
भोर विरतो रि सड़झों में रोई तो ऐव होगा तभी वो सगाई छूट गई ।
छत्तमों ने जयरूशित को कमी देता नहीं था पदन्तु उसने सदेषर अपमान
महयूप छिपा कि घुरूप दो जाने के कारण उप धो सगाई टूट गई। उप्तके भविष्य
था फँसला हो यया। उयका संत चाहा कि मर जाय । पहले बह হুল যা
बनते के त्िये बैठती थी तो मढ/न की गली में खुलते वालो जिड़की में। यदि
शोई लटका संकेत स्रे धरारत करता तो यह धमकाने के लिये भौहें তা কাত
या मुंह बिढ्ाकर प्रेंगूठा दिला देती था। इन खेलों में उत्ते मी मजा आता पा 1
অথ অর हुआ या रोशतों के लिये बंठती तो आँगन गें बलम वाली शिड़की में
कधौ में फूत और चिड़िया बनाना, ददापे से दौत उजले और हीठ लाख करना
घौर बलफ् सर्गी रंगीन चुश्षियों का शोक भी उमने छोड़ दिया था
विधवा ही पाने के बाद से उत्तमी की मा ले अर-कर्त का नियम सार
कर लिया था । मुंद मेपेरे ही रावी पर स्नान करने चली घाती घी । लौटते समय
ग्वाल के यहाँ से दूध भोर चौक से सब्जो भी लेती थःतती थी । বিহানহান নী
यजे कालिज पला जाता था इसलिये कटपट घृह्हा जला कर অতটা ক লিন
ভালা মলা ই ঘী। অব उत्तमी भी सयानी हो गई थी । भाई के लिये खाना
बना ढर उस्ते छिला देने का काम सड़की पर छोड़कर उत्तमी की मा पति के
शोक में काला सदूँ गा पहने और राख से रंगी कादर भोढ़ लड़की के लिये वर
को तलाश में दाहर निकल जात । लाहौर, अमृत्षर में विवाह के सम्बध प्रय.
द्विपं ही पापम में तब कर लेती थी। पुरुषों को स्वोकृति भर ही देवी होती थी ।
उत्तमी बी मां ने मुतरमडो, परापड्मडी, मच्छीहट्रा, धंदमिट्ठा गुमदो-याजार,
लुहारोपंडो, मोहतयो के महल्ते में ऊचो छाति बालो का एक घर न छोड़ा ) वह
हब की समर्ाया इररती--“लड़को के बाप फो সই অপ) হা बरस नहीं हुए,
जंड़की का घ्पाह में कैसे कर दू' ? लड़की को झोतला जहर निकली भी पर अब
मी कोई च्त कर देख से उनका रूप-रंग ) हरों में एक है”17
सहकों की माताएं अपना पीछा छुड़ाने के लिये सद्यानुमूछि से बवसी प्रकट
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