देवता राधाकृष्ण | Devata

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Devata by राधाकृष्ण प्रसाद - Radhakrishna Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवता अरे 1... तू राम्‌ १-जीम काटकर गोविन्द्‌ बोला । “घर भी ।*--ओौर विना उत्तर की प्रतीक्षा किये वह उस. तेज धारा सें कूद पड़ा। क्षण में प्रबल लहरें उठीं और देखते-ही- देखते रामू अदृश्य हो गया ! ३. घाट पर बड़ी हलचल सची । “कौन कूदा है, जी ?!--एक ने पूछा । . “रामू ।“--किसी ने उत्तर दिया । “पच्छिमपट्टी की विधवा जाह्मणी का रामू १ हाँ जी, वही ।” सब मानों स्तव्ध रह गये ! एक बोला--“बेचारी अनाथ हो गई ।” दूसरा बोला--“उसके बुढ़ापे की लकड़ी हूट गई ।” ` तीसरे ने दीधे साँस लेकर कहा--“कित्तना सुन्दर लड़का था''“* भाग्य का फेर !” ৬ ৯, रामू की सा ने भी यह खबर सुनी । उसे काटो तो खून नहीं । आखिर वही वात होकर रही ! “हे भगवान्‌ ! तुम्हे क्या यदी मंजूर था १ मेरे.रामू को पृ




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