जय कीर्ति-गाथा | Jai Kirti-gatha

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Jai Kirti-gatha by युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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41 22 १०. ११. १३. পা - न्तिहा टेम तणी सेवा करी, दश दिवस आसरे चित्त धरी। चित्त धरी सेवा करी पाछा, देश मेवाड पधारिया। काकरोली मे मृखाजी तव, कटै वयण सुखकारिया। पच राति मापजो इहा रहौतो, ह सजम लेस सही। जद जय कहै पच राति नीतो, हिवडा थिरचा मुझ नही॥ इम कही रात्रि इक त्यां रही, श्रीजी दवारे आया जय सही। सही आया तव सुखाजी ना, हृता जेठ जेठाणी तिहा) भाया ने समझाय ने जय, रात्रि एक रहि ने जिहा। विच एक रात्रि रही ओढण, खमणोर आया गुणनिला। तिहा सुखाजी ने वलि त्यारा, जेठ जेठाणी भला ॥ त्या आया नाथद्ारे ना भाया वलि, एक रावि रह्या त्या रगरली। र्गरली त्या सुखाजी नं, चारिव रत्न दे ऊमही। वृद्ध चंदणाजी प्रते सूपी, गोगुदे आया सही । तिहा सरूप णी प्रते स्वामी, ऋपिराय पुस्तक भोलाय ল। दग ठाणे गुजरात कानी, विहार क्रियो थो बुध मने॥ तिहा सरूपचदजी स्वाम ना, दर्शग करी जय शुभ मना। शुभ मना जय रात्रि इक रही, थया दोय भाया साथे जिहा। छ: मुनिवर संग विहार करी ने, झारोल में आया तिहा। जीवो मुनि ने जवान स्वामी, हुता त्या कने उमही। रामसुख मुनि कह्म| हू पिण, तुझ सगे জানু सही॥ हिवि सप्त ठाणे जय महामुणी, गुर्जर देश नी दिशि चाल्या ग्रुणी । गुणी मुनि अति गहन अटवी, बिहु पास मंग डगर घणा। 'उत्तुग अति, फुन भील तस्कर, स्वापद' शब्द विहामणा'। पिण साहसिक मन জ্বী লাশ, অশ वे श्रावक सेवा करे। वेचावही थइ ईडर आया, पछे अमनगर आया तरं॥ हिंवे मोती आदि पंच मुनिवर भणी, कह्म थे ता धीरे-धीरे आइजो गुणी । गुणी थे भलाइ धीरे आवो, ह तो आगल जावसू। इक कोदरजी ने साथे जनेड, गुर्‌ं संगे सुख पावसू। १. बहुत ऊचे । २ हिसक जानवर । ३. डरावना | *लय--जकड़ी नी... जय-सुजश ३७




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