श्री रविशंकर शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ | Shri Ravishankar Shukla Abhnandan Granth

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Shri Ravishankar Shukla Abhnandan Granth by श्री उदयशंकर भट्ट - Shri Uday Shankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन तथा आभार सूद हिन्दी साहित्य सम्मेलन के १६ वे दुर्ग अधिवेशन में छत्तीसगढ़ के साहित्य- हे सेवी मित्रों ने एक प्रस्ताव द्वारा यह भावना व्यक्त की कि सम्मेलन की श्रोर से प्रान्त के वयोवृद्ध अग्रणी पं. रविशंकर शुक्ल को शभ्रभिनन्दन ग्रन्थ समपिंत किया जावे । तत्पदचात्‌ सम्मेलन की कार्यकारिणी ने श्रपनी दिनाद्ू २८ नवम्बर १९५४ की सभा में इस विषय में विचार किया श्र यह निद्चय किया कि श्री शुक्ल जी की हिन्दी सम्बन्धी दीघ॑ तथा विशिष्ट सेवाओं को दृष्टिगत रखते हुये उन्हें सम्मेलन की श्रोर से उनके श्रागामी ७९ वें जन्म-दिवस पर अभिनन्दन ग्रन्थ श्र्पित किया जावे । यह ग्रंथ उसी निश्चय की पूर्ति है । पं. रविशंकर जी शुक्ल का नाम समस्त देश में सुपरिचित है । उनकी सेवायें सुदीघ तथा विविध है । वे इस प्रान्त के सार्वजनिक जीवन में उस समय श्राये जब हमारे देश की चेतना ने जागृति की प्रथम बलवती करवट ली श्रौर तब से देश की राजनैतिक प्रगति एवं राष्ट्रीय वल-वृद्धि के साथ उनकी सेवायें सम्बद्ध रही है । राजनतिक सामाजिक आर साहित्यिक तीनों क्षेत्रों में उन्होंने बन्दिनी माता का उत्पीड़न अनुभव किया श्रौर इन तीनों क्षेत्रों में जो हमारे देश की जागृति की साधक व पारस्परिक पुरक प्रवृत्तियां रही है उनकी सेवाश्रों का योग महृत्त्व- पूर्ण रहा है। पं. रविशंकर जी शुक्ल को वर्तमान में प्रान्त का सर्वोपरि व्यक्तित्व का गौरव प्राप्त हैं प्रौर यह उनकी लोकप्रियता का मेरुदण्ड है । प्रान्तीय क्षेत्र मे स्वाघीन शासन की प्रथम भलक के समय सन्‌ १९३७ में खरे काण्ड के बाद ही वे प्रान्त के प्रधान मंत्री निर्वाचित हुये श्रौर परचातू दोनों चुनावों में श्रपना स्थान श्रक्षुण्ण रख वे प्रान्त के मुख्य मन्त्री की घुरी आ्राज भी श्रोजपुवंक सम्हाले है । इस वीच राजनैतिक उतार-चढ़ावों से यह प्रान्त मुक्त नहीं रहा तथापि श्री शुक्ल जी श्रपने व्यक्तित्व व-विशेषताओओं-जिनमें वढ़ती उम्र की लोक-श्रद्धा का ही हाथ नही उनके अ्रपने मस्तिष्क की शक्ति हृदय का माधुयें श्र शारीरिक कार्य-निष्ठा सभी का प्रचुर प्रमाण सम्मिलित है यदि सबका सम्मान प्राप्त करते हुये इस पद के श्रधिकारी बने रहे तो यह उनके व्यक्तित्व के समय की कसौटी पर खरा सिद्ध होने का स्वयं प्रमाण है । परन्तु उनके कर-कमलो में यह श्रभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने का कारण उनका उक्त पद नही यद्यपि वह स्वयं भी उसका श्रधिकारी कहा जा सकता हूँ ।. ग्रन्थरूपी यह श्रद्धा-सुमन तो उनकी विशिष्ट हिन्दी सम्बन्धी सेवा को दृष्टिगत रख के ही प्रदान किया जा रहा है । पं. रविशड्ुर जी शुक्ल इस प्रान्त के हिन्दी संगठन के जनक कहे जा सकते हैं । उनके उद्योग से ही सन्‌ १९१८ में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्यापना हुई । श्रापने प्रान्त में भ्रमण कर उसे सफल बनाने का उद्योग किया । इसके बाद भी वें प्रायः प्रत्येक सम्मेलन में उपस्थित रह संस्था को सक्रिय बनाने में सहायता देते रहे । उनकी इन सेवाओं के सम्मान स्वरूप ही सन्‌ १९२२ के पंचम नागपुर श्रघिवेशन का श्रध्यक्ष पद झ्रापको प्रदान किया गया । उनका हिन्दी सम्बन्धी दृढ झ्रनराग श्रौर राष्ट-निर्माण के लिये उसकी चरम उपयोगिता किस आस्था भ्ौर श्रात्मविश्वासपू्ण दाव्दों मे बोलती रही है यह उनके अ्रध्यक्ष पद से दिये गये प्रथम




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