शीघ्रबोध भाग - 15 | Shighrabodh Bhag - 15
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
71
श्रेणी :
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गच्छीय मुनि - Gachhiy Muni
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श्री ज्ञानसुन्दरजी - Shree Gyansundarji
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२५)
+ ' (3) तेजस कार्मेण शरीर जीवेफि जनादिक्राल्से साथ ही
कगे हुवे हैं और मोक्ष नाते समये ही इन्होंका त्याग द्वोते हैं.
चासने तेनत कामैण शरीरका त्याग करनेसे सिद्ट जतिश्यक्रो प्राप्त
करते हूवे छोकके अग्न भाग पर के विराजमान दोनाते दे
अथीत् जशरीरी होमाते है|
(३९) प्रश्न-शिष्यादिकि साहिताका त्याग करनेसे कया
फर होता है ?
(3०) प्ताहिता लेना (इच्छा) यह एक कमनोरी ही दे
बाले साहिताक् त्याग करनेसे जीव एकत्व पणाक्षे प्राप्त करते दि
एक्त्य हो से नीवको काम क्रोध कलेश शठ्दादि नहीं होता दे
स्वसत्ता प्रगट हो जाती है इन्दे तप सयम सवर् জান দ্যান
समाधि आदिमें विध्व नही होता निभिनता पूवक सात
कार्थ प्राधा फर शक्ता है)
(४०) प्रश्न-भात्त पाणी (स्रथारा) का त्याग करनेसे क्या
फन होता दे!
(उ०) आलोचना करके समाधि सहित भात पाणो त्याग
करनेसे जीवोंफे जो अनादि फाल्से च्यारों गतिमें परिभ्रमण
करनेवाले भव थे उन्दोंकि स्थितिका छेदन करते हवे सस्तारका
अन्त कर देतारे | +
(४१) प्रश्च-्वमाव (अनादि कामे ठरे पाप सेयनेखप
प्रवृत्तिा त्याग फरनेसे क्या फल होता है 2
(3०) स्वमभावका त्याग करनेसे अठारे पापसे चिमृत्ति हो
जादी है इन्टोंसे जीवोंक्ों सर्वे ततीरूप स्रपणतिमें रमणता होती
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