श्री ज्ञान विलास | Shri Gyan Vilas

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Shri Gyan Vilas by श्री ज्ञानसुन्दरजी - Shree Gyansundarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ जीवा खमतु मे । मित्तीमे सब्व भूएसु, बेर मज्ञ न केणइ ॥98॥ एव महँ आलोइअ | निंदिआ गरहिआ दु्गंछिआ सम्म॑॥ तिथि- हेण पडिकंतो । वंदामिजिणे चउच्पीसं । ४० ॥ दोय बन्दुना दना। अध्युदहिआओं खमायके । दा बन्दना | ॥ अथ आयरिञअ उवश्ञाएं ॥ आयरिअ उबवकाए | सीसे साहस्मिए. छुल गणेश ॥ जे मे केह कसाया । सब्पे तिविहेश खामेमि ॥ १ ॥ सब्पस्स समण संघस्स | भमगवओ अंजाले करिअ सीसे ॥ सब्ब॑ समा- चहत्ता | समामि सब्मस्स अहयंपि ॥ २॥ सथ्यस्स जीव रा- सिस्स। भावओ घम्म निहिस मिअचित्तो ॥ सर्व्य समापइत्ता स- मामि सब्बस्स अहयंपि ॥३॥ बादमें करेमिमंते० इच्छामिठामि ० तस्सोत्तरी० अन्नत्थ० दो लागस्सका काउस्सग्ग० एक लोगस्स अगठ, सब्बलोए अरिहंत चेइआण यावत्‌ एक ले।गस्सफा काउ- स्सग्ग० | पुरुपर० यावत्‌ एक लोगस्सका काउ० । |िद्धाण बुछाण के बादमें--श्ुतदेवताका एक नवकारका काउस्सग्ग करके स्तुति-- बाग्देवी परदेपी भूता, पुस्तीका पत्र लिख्यतु । आपो व्या वि उजेस्तु, पुस्तीका पद्म लिख्यतु ॥ बादम चेरोव्यादेवीका एक नवकारफा काउ० स्तुति । सामानशारित पुत्राभो, वेरोव्यारमयेवतु । शान्तों राजिजाति य ग्रह | पैरोव्यारमयेवतु. ॥ १ ॥




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