राजस्थानी शब्द सम्पदा | Rajasthani Shabd Sampda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाशकीय गन तीत दशकों से समिति ने हि.दी राजस्थानी को अनेक पुस्तकों सा प्रकाधय बिए हैं। विक्रय यवस्थाओं के नितात अभाव के बावजुद सस्यान का निरतर यह प्रयास रहा कि अपल के श्रष्ठ साहित्य को प्रकाशित कर लोक के सम्मुख लाथा जाएं। समिति वे कई प्रकाशना को राष्ट्रोध स्तर की स्याति प्राप्त हुई है। सम्रिति की बराबर यह चैप्टा भी रही है कि हिं दी अथवा राजस्थानी वी उन पुस्तकों का भी प्रकाशन किया जाए, जिनका महत्त्व दाना भाषाओं मे समान द्पते प्रतिपादित हा त्तथा जिससे दोनो भाषाओं को निकटता व परिपूरकता परिभाषित वी जा सके। हि दी बे निर्माण मे राजस्थानी का कम योगदान नही रहा है । खडीबोली के तिर्माण-्काल स॑ ही राजस्थानों को हिंदी साहित्य में सम्पूण सम्मान मिला है। आज भऐ ही राजनीतिक या दूसरे जतक कारणों से राजस्थानी क विकास को कुछ तथा कथित हि दी सेवी अपन लाभ के मार्गों मे बाधक मानकर दस प्रा त की माय भाषा का दर्जा दिए जाने मे विरोध प्रकट बर रहे हो, पर तु हि दा राजस्थानी दे प्राचीन सम्बंध समय की धारा मं विलीत न होकर अपने सतत प्रवाह को बताएं रखेंगे इसमें सदेह नहीं। आज जब हम दोनो भाषाओं वे भाषा: सामथ्य का विश्लेषण करते हैं तो स्वत यह पाते हैं कि एव ही भापा उदर से जमी इन भाषाओं वे परस्पर कितने निकट सम्बंध हैं। समिति द्वारा पूव प्रकाशित पुस्तक प्राचीन चिलाहेखों मे राजस्थानो भाषा' में भो हमने सस्या द्वारा हिंदी राजस्थानी भाषा, साहित्य के सर्मावत्त स्वरूप को विश्छेषित करने थाले साहित्य के प्रकाशन की घोषणा की थो। द्विदी राजस्थानी वे श्रेष्ठ छखक शो मूलचद प्राणेश की पुस्तक राजस्थानी ध सम्पदा को प्रकाशित कर, सस्वा गौरव अनुभव करती है। प्रस्तुत पुस्तक मे विद्वान लेखक ने राजस्थानी वी विनुप्त होती जाती प्राचीन नब्दे सम्पदा রা स्युतत्तिलम्य अब ओर प्राचीन साहित्य मे उसके अयोग को उद्धरण सहित प्रस्तुत कर उसे अक्षण्ण रखने मे उल्छेखनीय योग दिया है ।




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