अंगारे | Angaare
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवती प्रसाद बाजपेयी - Bhagwati Prasad Bajpeyi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रहस्य की बात ड
मात्र थी--स्वप्न-सी अकल्पित, मृग तृष्ण।-सी ऐन्द्रजालिक | वह अकेला
आया है ओर अकेला जायगा ।
-- “लोग कहा करते है, मानवपरकृति ग्रपरिवतंनशौल है । लोग समभ
त्रेठते है कि मनुष्य की श्रान्तरिक रूप-रेखा नहीं बदलती । संसार बदल
जाता है, किन्तु मानवात्मा की प्रेरणा सदा एकरस अक्षुर्ण रहती है ।
किन्तु इस प्रकार के निष्कर्ष निकालते समय लोग यह भूल जाते हैं कि
मनुष्य की स्थिति वास्तव में है क्या ? जो सत्ता जगत के जन-जन के साथ
समन्वित है, जिसकी चेतना और अनुभूति ही उसकी मूत अवस्था है,
किसी के स्पर्श और आधात के अनुषंग से उसका अपरिवजन केसे संभव
0१)
। दिन आये और गये | विपिन अब कलाविद् न रहकर दाशनिक हो
गया । | মি ]
उसके पिता अत्यधिक बीमार थे। यहाँ तक कि उनके जीवन की कोई
आशा न रह गई थी। वे रायसाहब थे। उन्होंने अपने जीवन में यथेष्ट
सम्पत्ति और वैभव का अ्जेन किया था | अपनी सदाशयता और विनय-
शीलता के कारण नगर-भर में उनकी-सी सर्वाधिक प्रतिष्ठा का कहीं किसी
में साइहश्य न था। नित्य ही अनेक व्यक्ति उनके यहाँ दर्शन तथा
मंगल-कामना प्रकट करने करे लिये श्राते रहते ये |
वृद्धता में तो रायसाहब का अंग-अंग शिथिल-ध्वस्त हो ही रहा था ;
किन्तु मोतियाबिन्दु के कारण उनके नेत्रों की ज्योति भी अत्यंत ज्ञीण हो
गई थी । यहाँ तक कि वे अपने आत्मीय जनों का परिचय दृष्टि से ग्रहण
न करके स्वर से प्राप्त करते थे ।
एक दिन की बात है । रात के आठ बजे का समय था | रायसाहब
बोले---“कहाँ गया रे विपिन १?”
विपिन ने तुरन्त उत्तर दिया--“में यहाँ पास ही तो बैठा हूँ बाबू !
कहो, क्या कहते हो £
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