मार्क्सवाद | Markswad

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Markswad by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खमायवादी प्रिचाये श्र श्रास्म ] १५ फरने का भवसर पा जाते हैं। मलुष्यठा के नाते सथ मलुष्पों के समान द्वोमे पर भी यह्‌ असमानसा मनुष्य समाज में का खादी ऐ। इस धसमानवा भौर षिपमवा का फस होता दे, खाघन सम्पन्न मनुष्य साधनद्वीन मनुष्य करा उपयोग अपने हिस में करने कगता हे ओर मनुष्य समाञ् में भरान्ति पत्पन्न हो साती है। समाझ से पेन ভী আন লালা यदह भखतोष समाम में अशास्ति, विद्रोष्ठ ओर संघप ऐडा फरता है। सनुप्य-समाज् अपने आपको हस भशान्ति और संघर्ण से यचाने के क्षिये उपाय भोर चेष्टा ऋरता रद्दा है। उपवस्था बनाता रहा है | कुछ शब्दों में कद्दे घाने वाले इस परिव्रतन में दृारों वे स्यतीस हुये हे । सम्पन्न मनुष्य ने अशान्ति और भसन्‍्वीप प्रफट न द्वोने देने के सिये অহী भपनो शक्ति से काम किया सहाँ षने सपनी पना व्यवस्था फी रक्षा क छिये सिद्धान्त भी बनाये । उसने निर्मलो घौर साधघनद्वीन ज्षोपों फो संठोप की शिक्षा दी। परक्षोरू में दृष्ध का भय दिखाया और विपमता को चढ़ने से रोकने के क्षिये दलिछों री भषस्था फो सक्च षनाने फे लिये उसने वज्षत्रानों योर साधन सम्पन्त लोगे को दया, खदनुभूचि भौर यग फ भी .षपदेश दिया । घन्दौप, दया, सद्दानुभूति झोर त्वाग के उपदेशों को सफज्ञ यनाने के लिये इनके परिणाम स्वरूप इस श्ीपन में, और रुत्यु के पाद दूसरे जीवन मै मी दुख मिलने षा विश्वाघ दिलाया गया । ब्यक्ति को समझाया गया क्रि यह व्यक्तिगप् पूता फे लक्षेण উ उसी रक्षति फे साधन हैं भौर प'्तोक सें छुस्त देने वाले हैं। इन प्रपदेशों फी तध् में समा में शाम्ति भौर व्यबस्था रायम रखने की इच्छा और पढे श्य ही मुख्य यथा । मनुष्य प्रमान्न में पेदा हो जाने घाले भसस्वोप भौर अशाम्ति फा कारण मनुष्यों की क्रय॒स्‍्था में आ ज्ञाने दाली असमानता था। इसलिये, सामाणिफ द्वित के विचार से, मनुष्य छमाज का हित चाहने पाले विचारों ने छा समानता का उत्देश दिया भीर असमानता को दूर कर समानता खाने की चेष्टा छो। समानदा और भस सानता से उनका জনা আমিনা ঘা, ছল ভঘই্হী और देष्टाभों का क्‍या परिणाम इभर ठाद्दोंने इसके किये किन शुषायों फा ज्यपद्दार फ़िया , उन्हें कहां दक5 छफहता सिझ्ती, इसी घिषय पर म करमर विचार करेंगे




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