कविरत्न 'मीर' | Kaviratna " Meer"

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Kaviratna " Meer" by रामनाथ सुमन - Shree Ramnath 'suman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बेहोश लहरों में नदीं जनिता कि दुनिया में कहीं मदिरा की कोई জীবহ্লিলী है या नहीं, पर एक दिन अनायास ही आँखें मूंदकर देखा था क्रि हृदय की हल्की नसों के बीच अधरों तक छलकता हुआ एक याला हस रहा है ! मेरे होश उड़ गये--इधर-उधर देखा, कोई नहीं था। कॉपते हाथों से उसे उठाया, पीने की इच्छा नहीं थीः पर ओठों ने “अपनी चीज़” देखकर जबरदस्ती चूम ही लिया ! राखे भुके गड; दिल पानी बनकर बह गया ! वह प्याल्े की पहली सांस थी जिसने मेरे कलेजे मे जीवनः का सारा पराग बिखेर दिया | कुछ लड़कपन का कुतूहल था, कुछ यौवन की उमंगें थीं। प्रलोभन ने करवट ली, उत्कंठा ने ठेस मारकर उसे जगा दिया । ओखिं मूंदकर, दिल की सारी वेकली के बल पर, मधुपात्र की वह हँसी अपनी दुनिया में छुटाने लगा। तवसे आज तक कितने दिन, कितनी रातें बीत गई, वह खाली २




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