अपराधी कौन ? | Apraadhi Kaun?

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Apraadhi Kaun? by इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavanchspati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बीजारोप १३ नमं ये । इलाहाबादी श्रमरूदो से टक्कर लेते थे। कुम्हारों के घरों से श्रागे न ज्वा पड़ा । चार पैसे वसूल हो गये । उम्मेद बड़ा. प्रसन्‍न हुआ । भ्राज उसने जीवन में पहली बार कमाई की । चार पैसे लेकर भागा श्रौर हलवाई के यहां से इध खरीद लाया । सां दरवाजे की श्रोर टकटकी लगाये लेदी हई थौ । उम्मेद को कुल्हड़ में दूध लिये आता देखकर बड़ी प्रसन्‍त हुई । उसे ऐसा प्रतीत होने लगा मानो उसका बेटा कमाऊ हो गया। मां ने थोड़ा-सा दूध पी लिया । उम्मेद ने दो-तीन अमरूद खाकर ऊपर से दूध के घट ले लिये और मां-बेटा दोनों सन्तुष्ट होकर रात को सो गये । - ( भ अनारो इस घटना के पीछे कई सप्ताहू तक बीमार रही । उम्मेद अ्रव अपने को मां की सेहत का जिम्मेदार ससकने लग गया था। सां काम पर नहीं जा सकती थी। उसकी और अपनी उदर-पूति का बोध उम्मेद पर पड़ा । उभ्मेद ने श्रभी तक केवल एक ही काम सीखा था--- वहु चांडाल चौकड़ी के साथ मिलकर छोटे-छोटे डाके या चोरी के मामले कर सक्ता था श्रौर उन्हीं से कुछ कमा भी सकता था। पहले वह केवल एक शोक की चीज़ थी, अब जीवन का आवश्यक भाग बन गया । वह दिन के चार-पांच घण्टे, और कभी-कभी दिन में शिकार न मिलने पर रात को कुछ समय भी इसी रोज़गार में खर्च करता । जिस रो कूं हाथ न लगता, फाका मस्ती रहती । श्रनारो स्वयं भूखी रह्‌ सकती थी, परन्तु बेटे की भूख उससे লহাঁহল नहं होती थी । वहु सोचती, अगर उम्सेद का बाप श्रसमय में हम लोगों को न छोड़ जाता , तो भ्राज बेचारे को चौरी त्यों करनी पड़त! पिरि हम इतने गरीब क्यों हें ? वह जो दिन भर कोठी में पड़े रहते है, जो मिल के सेठ जी हैं, उनके पास इतनी दौलत है, ऐसा अच्छा सकान है । पर हम जौ, दिन उसी दिन भूखे सोना पड़े । ऐसी हालत में बेचारा बच्चा क्या करे ?




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