काव्य के रूप | Kaavy Ke Rup
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य का स्वरूप ३
मानसिक ग्रतिक्रिया अथांतू विचारों, भात्रों ओर संकल्पों की शाच्दिक
अभिव्यक्ति हे और वह हमारे क्िसी-न-क्रिसी प्रकारके हित का साधन
करने के कारण संरक्तणीय हो जाती हे ।
साहित्य शब्द की व्युत्पत्ति भी इस परिभाषा को पुष्ट करती है।
साहित्य शब्द का अथे है सहित होने का भाव--सहितस्यथ भावः
साहित्य! । अब प्रश्न होता है कि सहित शब्द्
साहित्य शब्द का क्या अथ हैं ? सहित शब्द के दो अथे हैं--
की व्युत्पत्ति (८१) सह अथात् साथ होना (२) हितेन सह
सहित” अथात् हित के साथ होना अथवा जिससे
हित-सम्पादन हो । सह (श्चा ) होने के भावः को प्रधानता देते हुए
हम कहेंगे कि जहाँ शब्द ओर अथ्, विचार और भाव का परस्परा-
नुकूलता के साथ सहभाव हो वही साहित्य हे। शब्द और अथ का
त होना स्वाभाविक रूप से ह। माना गया है। कबिकुल-चूड़ा-
मणि कालिदास ने अपने रघुवंश के मंगलाचरण में शब्द और अथे
के संयोग को अपने इष्ट पावती-परमेश्वर के संयोग का उपमान माना
है ।% गोस्वामी जी न भी वाणी और अथ का सम्बन्ध जल और
उसकी तरंग की भाँति एक दूसरे से भिन्न और अभिन्न दोनों ही
माना हे--
गिरा अथ, जलन बीचि सम, कहियत भिन्न न भिन्न ।
बन्दीं सीता राम पद, जिन्हें सदा भ्रिय खिन्न ।
इस ग्रकार सहभाव में ही साहित्य की सामाजिकता का भाव लगा
हुआ है ।
सहित का अथ 'हितेन सह सहित” लगाते हुए हम कहेंगे कि
साहित्य वह है जितसे मानव-हित का सम्पादन हो । हित उसे ही
कहते हैं जिससे कुड् बने, कुछ लाभ हो--विद्धातीति हितम!---
आनन्द भी एक लाभ हे । रुपये-आने-पाई का ही लाभ लाभ नहीं है ।
विधाता में भी हित का भाव है। हमारी परिभाषा में सहित होने का
ओर हित होने का भाव है । श्रप्रेजी शब्द लिट् चर ( 1.1८५.५-
(৪০০) अक्षरों ([,७६८:७) से बना है। अक्षरों का जितना विस्तार है
পপ পা পপ পপ পাপী ~ শি টি क ज
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रः वागर्थाविव सन्ण्क्तो वागरथ॑प्रतिपत्तये ।
जगतः पितसौ बन्दे पावंतीपरमेश्वसे ॥
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