जैन पदसागर | Jain Padsagar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैन पदसागर   - Jain Padsagar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पन्नालाल बाकलीवाल -Pannalal Bakliwal

Add Infomation AboutPannalal Bakliwal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[- ং৭-]. शिवमग-दरसावन रावसोे दरस शेष सुरेश नरेश रहै तोदि, पार न कोई पायेजी ७२, श्री भरहतछति छलि हर्द आनंद्‌ अनूपन छाया है १८ श्रीमादिनाथ तारन तरनं ८७ श्रीगुरु हैं उपगारी ऐसे चीतराग गुणधारी चे ९५२ श्रीजिन तारनद्वारा थे तो मोने प्यारा छागो राज ११० श्रीज्ञिनदेव न छाड हों सेचा मनवचक्ताय हो ६२. श्रीजिनपूज्ननको दम आये, पूनत दी दुखद'द्‌ मिराये २१.१०४ ध्रीमुनिराजत समताखंग, कायोत्घगं समाहित अंग (१०१ श्रीज्िनचर द्रल आज़ करत सोख्य पाया ६ सख सच मिरु देखो देरी म्हारी दे, ्रिशलबाल चद्नरखार ३४, सम-आराम विहारो साधुत्नन, खम आराम चिहारी १५४ समत क्यों नदि चानी अक्ञानी जन ९३३, सम्थग्ञान विना जगन पदिखाननवाला कोई नहीं १७४- खारद्‌ तुम परखादतें आनंद उर आाया १३७. सांचीतो गंगा यदं वोतसगवानो १३. साचे चद्रध्रभू सुखदाय ६७ खामीजो तुम गुण अपरंपार चंद्रोड्चछ अविक्कार ६२ खोमीजौ खांचो सरन तिद्वारी ও स्वामो मोहि अपनो जान तारं, या विनतो अव्र चितधासे ६१ खामी रूप अनूप विशाल मन मेरे बखत ६€




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now