भगवान महावीर और उनका उपदेश | Bhagwan Mahavir Or Unka Updesh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)চা
नमः सिद्धेम्यः ।
भगवान् महावीर चि
उनका उपदेश ।
“बहुगुणसंपद्सऋर्ल परमतमपि सधुरवचनविन्यासकलमस ।
নযলনতনবঅন্ধভ तव देव ! मतं समन्तभद्व॑ सकलम ॥*
--इदत्स्वयंभूस्तोश्र
अर्थातू--“स्वैक्षत्य, चीतरागत्वादिक जो बहुगुण तठद्गप
सम्पत्ति उससे न््यून, तथा मधुए चचनों की रचना खे युक्त
मनेक्ष, ऐसा पर का मत है, तथा आपका मत्त सम्यक् भकार
से भव्य भाणियों के! कल्याण का कर्ता हे और नैगमादि नयों
का जो भंग ( स्यादस्तीत्यादि भेद् ) तद्ग॒प जे कर्शभूषण उसके
लानेवाला है, अर्थात् नैगमादि नय था सप्तसंगों सहित है।?”
विक्रम की दूसरी शताब्दी में देनेवाले श्रीमहूगवन् समन्त-
भद्राचाय ने भगवान् महानीरजी फे उपदेश
সাধন और के सम्बन्ध मं अवश्य दी उषयुक्तरीलया उष-
विपयमरवेश। यक्त शब्द् कदे दँ । उन भगवत्तुस्य সানা
ने किस प्रकार यह शब्द् कटे इसकी परीक्षा
करना माने! अपनी अश्रद्धा प्रकट करना है, अथवा 'सूय्ये के
' दीपक दिखानेवतः चेष्ठा करना है। उन शानशुणगंसीर गुरुचय्य
के उक्त शब्द ही अपने महत्त्व के स्वय प्रकट कर रहे हैं । ता
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