अणुव्रत - आन्दोलन | Aanuvrat - Aandolan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
51
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४
प्रारम्भ से भ्रब॒ तक
इस कार्यक्रम का प्रारम्भ छोटे रूप में हुआ था। यह इतना व्यापक
रूप लेगा, इसकी कल्पना भी न थौ । जनता ने श्रावश्यक समझा---जैन-
जैनेतर सभी ने इसे श्रपनाया-- यह प्रसन्नता की बात है । मेरी भावना
साकार बनी । उसमें मेरे शिष्यों--साधु और श्रावको का वांछित सहयोग
रहा ! उन्होंने नियम तथा श्रन्य श्रावदयक विषय भी सुझाये । श्रालोचकों
से मैंने लाभ उठाया । আনা আহা লিমা श्रौर उपेक्षणीय की उपेक्षा की।
उचित सुभावों को स्वीकार करने के लिए श्राज भी में तयार हूं ।
व्रत-परमस्परा भारतीय मानस की श्रति प्राचीन परम्परा है। লন
इसका कोई नया आविष्कार नहीं किया है। मैंने सिर्फ उस प्राचीन
परम्परा को जीवन-व्यापी बनाने की प्रेरणा सात्र दी है। यह मेरा सहज
धर्म है। मुझे श्राव्ा है, लोग जीवन-शुद्धि के ब्रतों को प्रावभिकता देंगे ।
जटिल स्थितियों के बावजूद इन्हें अ्रपनायेंगे। श्रसल में जटिल तथा
विकट परिस्थितियों में ही बतों के संकल्प की कसौटी होती है। कसौटी
के मोकों को श्रामन्त्रित करना ही ब्रतों की सफलता की और पग
बढ़ाना है ।
--भ्राचायं तुलसी
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