नारी : गृहलक्ष्मी और कल्याणी | Nari : Grihalakshmi Aur Kalyani

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Nari : Grihalakshmi Aur Kalyani by श्रीरामनाथ सुमन - shriramnath Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क ...... ८ शभ ভু অনা হইত # इसलिए ञ्राज यह बहस कि दोनों में कोन बड़ा है, निरर्थक है.) इसे सुनकर मुझे हँसी आती है। सम्पूर्ण कुतकों की भाँति ये बातें केवल सत्य का मुंह ढकने के लिए. कही जांती हैं और श्रनुचित अधिकार तथा स्वाय की रका एवं पोषण दी इनका उदेश्य होता है| अनादि- काल से हम ने माता की पूजा की है। हमारे यहाँ उसे आद्या शक्ति-- समस्त शक्ति का आदि खोत--माना गया है। ऋषियों ने 'मातृदेवो भवः कहकर उसकी बन्दना कौ है, ओर उसके बाद पितृदेवो भवः का स्मरण किया है। पर इन बातों को जाने दीजिए । वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करें तो दोनों से से न.कोई बड़ा है, न छोटा, दोनों बराबर है। दोनों का समान महत्त्व है | संसार की स्वना मे दोनों के अपने-अपने, पर प्राय; एक से महत्व के, कत्तंव्य और कार्य है। एक दुसरे के बिना अधूरा है, पशु है। दोनों के संयोग भे जीवन की पृणता दै | एक के बिना दूसरा अपना कार्य, अपना प्राकृतिक सन्देश पूरा नहीं कर सकता। पशु-पक्ती, वनस्पति जहाँ भी चेतन जीवन का प्रसार है, सर्वत्र उसकी स्थिति और विकास दोनों के संयोग से है। पुदष जीवन का कठोर अतः रक्षक तत्व है; खी जीवन की मृदुल अतः विकासक शक्ति दै | पुरुष मे तेज है; जी में स्नेह है। पुरुष में ताहस है; ञ्ली में विश्वास और श्रद्धा है। पुरुष ध अधिकार है; ज्जी भक्ति है | पुरुष बल का शंखनाद दैः खी ममता कौ वीणा है। पुरुष ने लड़ाइयाँ लड़ीं, मैदान जीते, राज्यों की संष्टि की, समस्‍्याएँ पैदा कीं, ज्री ने उसकी कठोरता को अपने




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