हिंदी भाषा का सरल व्याकरण | Hindi Bhasha Ka Saral Vyakran

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Hindi Bhasha   Ka Saral Vyakran by डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिपि € लगाई जा सकती है-- ककाकिकीकुक्‌कृकेकंकोको इसी प्रकार अन्य व्यब्जनो में भी मात्राएँ लगती हूं । यहाँ चार वाते विकषेष रूप से ध्यान देने को हे-- १ श्र का कोई मात्रा-रूप नही होता । जेसा कि पीछे कहा जा चुका है शुद्ध व्यब्जन 'क' से होकर 'क्‌' है। कं में जब 'भ्र' लगाना होता है तो केवल हलू को हुदा देते हैं । भर्थात्‌ कून-श्रसक इसी प्रकार सभी व्यब्जनो का हलू हटाने के वाद जो रूप बचता है उसमें उस व्यज्जन के भ्रतिरिक्त 'भ्र' स्वर भी मिला होता है । जैसे ख, (खुन-अ), ग (गूनझ) तथा व (बुन-झ) झादि । २. 'अ' के अतिरिक्त भ्रन्य स्वरो के मात्ना-रूप लगाने के लिए व्यब्जन का हुलू हटाने के बाद उस स्वर की मात्रा जोडी जाती है । कून-श्रास्कना सका ३. श्रा (1). ई (ही ), श्रो (हे ) श्रौर श्री ( है ) की माताएँ व्यब्जन के वाद में लगाई जाती है--- का की को को इ ( ) की मात्रा व्यव्जन के पहले लगाई जाती है-- उ(._ )८कह(.) श्रीौरकऋ ( . ) की मात्राएं व्यक्जन के नीचे लगाई जाती हे--




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