श्री समवसरण प्रकरण | Shri Samvasaran Prakaran

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Book Image : श्री समवसरण प्रकरण  - Shri Samvasaran Prakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वालोक वर्तमान श रयन्‌ १२९ सस्या ते पधार गए, पन्यासज्ञी महाराजन्‌ का नगः प्रेम है ही समारोहसे हुआ, और स्ववर्भियों का स्वागत (भोजन) सुद [ই जवादरमलनी मानमलजी टीकायत के वहा, और शामको शाद्‌ गाराम तारूजी की ओर से हुवा था। वालीमें कई अरे से कुछ कुसम्प था जिम्तकी शान्ति के लए दोनो पार्टी झथात सब गाव चाक्षों की सम्मतिस एक करार मा जिस कर मुनिश्रीफो दिया है, कि ज्ञो आप श्रीमान फैसला मि षह हम सपको मजूर है, उम्मेद है कि भुनिश्री जो फैसला दगा पसो सप्र गाव शिगोद्धार कंर गाव में प्रेम एक्‍्यता स कार्य कर যানি वरता्वेग | इषं समय श्यपिष्ठायक्‌ दबकी बान्तीपर महग्यानी ६ कि सष तहत श्रानद मगल चरत दहै है मपिप्य्े लिए रसे री यानन्द्‌ मंगक्त की आ्याशा करत हुए इस लेसकी समाप्त करता हु । मैं एक परगाव का স্সানুমী हू, पूछने पर जितनी बातें मुझे मिक्ती, यहां किस दी है अगर इसमें कोई घ्रुटी रही हो तो आप मज्लन षमा प्रदान फरें | फिसधिक्म ] श्री सघ सेवक, समबसरणाक दुर्शनार्थी आया हुआ कैसरिमल चोरडिया वीलाडावाला




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