मित्रता | Mitrata

Mitrata by डॉ. गोपीनाथ शर्मा - Dr. Gopinath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ (० | म रहती दा, ता भी हमरे प्रशस्त मिक सम्प में मृत्यु को हम विपात्त के माम से तो कद्ापि न कह सकते। क्योकि यादि उसमे अव द्द: चेतन्य नहीं रहा है तो वह “ अपने सम्बन्ध में ऐसी दशा सें स्थित है कि माना उसने जन्‍म ६ नहीं किया था। “ अपने सम्प्नन्ध भें ” হুল নি कहागया है कि मृत्यु के अनस्तर की अवस्था चाहे केसी ही क्यों न हो उस के मित्रगण ओर उसका देश तो अपनी स्थिति के परय्यन्त शिवप्रसाद क इतमे दिवसा तकं जीवेत रहने के लिए सूर्य आनन्द मनाते रहेंगे। , अतणव चाहे केसीही दाशि से क्‍यों न देखी,ज़ार्य यह घटना जहां तक्र इस का सम्बन्ध भरे: मृत प्रिय मिन्र से हे मेरी दाष्टि में सर्वथा परिपूर्णं आनुन्दः प्रद हे. परन्तु अपने निज के लिए एशेवपसादर फी मृद्यु-निःसन्देह बहुत दुःख का कारण दहे । चकिकेय्‌ जन्त शिवप्रसाद से प्रथम हुवा भा, इस; लिप सुिकमालुसार सुभ को उस से पूर्व ही इस संसार से. प्रंयाण:करना उचित था । परन्तु यह, सोसाग्य मेरे घारदध सें. न था । तथापि उस की मित्रता पर < करने-से युके, यह. सेतोप , होता है (কি, ५




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