युक्त्यशासनं | Yuktynu Shasanam

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Yuktynu Shasanam by दरबारीलाल न्यायतीर्थ - Darabarilal Nyayatirthशीतल सागर - Sheetal Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० युक्त्यमुशासम वीरके स्याद्राद-शासनको निर्दोष एवं अद्वितीय बताया गया है वह युक्त है । कारिका ३५-३६ में चार्वाकों ( भौतिकवादियों ) की उस प्रवृत्ति ( मान्यता ) कौ, जो 'शिब्नोदर-पुष्टि-तुष्टि --खाओ-पिओ और मजा- मौज उड़ाओरूप है और लोकको पतनको ओर ले जाने वाखी है, मीमांसा की गयी है । कारिका २७,३८ और ३९ मे प्रवृत्तिरक्त एवं शम-तुष्टिरिक्त मीमांस- कोंकी उन अनाचारसमर्थक क्रियाओंकी आलोचना है जिनमें मांसभक्षण, मदिरापान भौर मेथुन-सेवनको दोष न मानकर उनका खुले आम समर्थन किया ह ।› समन्तभद्र कहते हँ कि उक्त परवृत्तियां निश्चय ही रोककै पतन- को कारण है, ककि जगत्‌ स्वभावतः स्वच्छन्द वृत्ति है ओर उसे कहींसे समर्थन ( असद्‌ वृत्तियोको विघेयताका प्रोत्साहन } भिर जानेपर और अधिक स्वच्छन्द ( स्वेच्छाचारी } हो जाता है । अतः हस तम (अज्ञानान्ध- कार) को दूर करनेके लिए शम, सन्तोष, संयम, दया ओर समाधिरूप वीर-शासन ही सुप्रभात है । दस प्रकार संक्षेपमे हस प्रस्तावमें एकान्तमर्तोको सदोष ओर अनेकान्तमत ( वीरशासन ) को निर्दोष युक्तिपुरस्सर प्रतिपादन किया है । विस्तारपूर्वक इन दोनोंका कथन समन्त दरक देवागममे उपलब्ध है । २. प्रस्ताव--इस प्रस्तावमे ४०-६४ तक २५ कारिकाएँ हैं । ४० से लेकर ६० वीं कारिका तक २१ कारिका्ओमिं वीर-जिनके द्वारा प्ररूपित अथं तत्त्व ( वस्तुस्वरूप ) का सयुक्तिक विवेचन किया गया है, जिसका संकेत अभेदभेदानभकमथतस्वं' ( का० ७ ) इस कारिकामें उपलब्ध है 1 वस्तुतः इन कारिकाओंमें, वोर-शासनमें वस्तुका स्वरूप किस प्रकारका व्यवस्थित है, इसीका मुख्यतया प्रतिपादन है--एकान्तवादोमे स्वीकृत वस्तुस्वरूपका १. न माक्त-मन्नणे दषो न मचे न च मैथुने । प्रदृत्तिरेषा भूतानां-***॥ _>उद्धृत, युक्‍तय० टी० पृ० ४३1




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