भारतीय साहित्य | Bharatiy Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्रक्तुवर १६५६] खोढवाता बे तेव तथा लोक-मानस ६ इस एतिहात्निक दध्टिविदु से यहस्पष्टदहौ जत्ता हैकिं यह्‌ “लाक-माउस की उत्भावना सामूहिक लोक मनोवितान के क्षेत्र में एक यथाथवादी वानिवा और सबसे महत्वपूण स्यापना है जो एतिहासिक पम में आज उपलब्ध हुई है। यहाँ हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि जय हम मानव मानस में आज 'लोफ मानसः फो स्यिति का उल्नेश्व करते हू तो हमारा ग्रमिप्राय उस उत्तराधिवरण के सिद्धात से नहीं जा जातोय दृष्टि से उसे ग्राह्मय मानते है । मानव ने जम लेने ही अपनी आदिम अवस्था में जो मानसिक उपलब्धिया प्राप्त की वे उसकी অন্ন मानवोय प्रद्वति बन गयी । वे हा निरतर मानव को परपरा में मानव का मानव वसाने वे विए सूत्र रूप में उत्तरा- धिकरण के रूप में, युग-युग में मानव मानव में अवतरित होती चली जाती हू 1 भौर झ्रादिम दाय वै रूप में श्रवचेतन वे श्रतगत कही मूल मानेसिव प्रवृति वे' रूप में सम्यातिसम्य मानव मे भी विद्यमान रहती ह्‌ । लोक-मानस के तत्व-- फ्रेजर न यह स्थापित विया था कि 'लाउ मानस थे दा प्रधान लक्षण ह---१ लाव' मानस विवेव पूर्वी (27८]०81८४1) होता है । उसने प्रिताजिकल बहा है । लौजित झयवा वाय कारण के यथाय क्रम को समझ सकने वाल मानस के उद्धाटित होने से धूव वी स्थिति से स्वध सवने वाली मने को प्रद्ृति | किस्तु जसा कि विफोर फिलासफो লাল वी पुस्तक में कहा गया है “3०5 10 18४0 ए70०ए९वे वा [दष्टा पार १1१८ [000 1095 2. 00751001091 21006 01 00081 21061061509 হত 0 2010 0৮ 061107005 0050006১ 0005 00750666006 0056 0065 20905 006 [৩200]) 02160005035 0000 0000 22250271006 00 11011) ৫8000070120, 019 ঘধনাক্ষি নতুন নর লক্ষ লা নং सकते थे। काय कारण क्रम की प्रावश्यवता वे सममत थे। पर समवत নিন भी क्रम का ही वे कायकारण संमफ सक्ते ये, काय कारण में व्याप्ते ययय कारणत्व भ्रौर कायत्वं उनके लिए महत्व नहीं रखत ये । भरत “लोक परानसः कौ विवेक पूर्वी! नहीं वहा जा संवता। फ्रेजर महोदय ने तो प्रिलाजोवल उस इसलिए माना है वि उनकी व्यास्या में विराधी तत्वा (८09201010०15) वा समीवरण रहना दै 1 २ फ्रेजर ने दुमरा लक्षण स्थापित किया वि वह मिस्टिव धयवा रहस्य शान दाता है । वर्योवि वे अपने झनुभवा वी व्याख्या में पराभ्राइतितर शवितयों का शझ्राथय जेते हू । पर यहे पराष्राइतिक शक्तिया वा झरण देना वस्तुत उनके मानम कां मूल নিশঘলা नही । यह ता उनकी एक बिटेष मूल मनास्यिति का परिणाम हैं। में क्यों पराप्राइतिव रावितया द्म कल्पनां करते ह यह्‌ जानने वो चेप्डा करने से हा हम मूल 'लोर-मानस वे तथ्य से परिचित हो सर्वेंगे 1 वस्तुत 'सोक्-माग' का मुत संध्टि के मनुष्य में विद्यमान सबसे प्रथम झपने जम की सहज प्रतिक्रिपाम्ों का प्रतिफल है | भाज फ़ायड के सिद्धातों से इतता ता भ्रवश्य ही सिद्ध होता है पि उत्पन्न होते समय भी चातकमे मूल षाम भाव व्याप्त रहता है. जिस हम




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