घंटा | Ghanta

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Ghanta by पाण्डेय बेचन शर्मा - Pandey Bechan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 घण्टा & “बिलकुल झूठ !” मूछोंपर हाथ फेरते महाराज संग्रास- सिंह बोलें,-- हमारे देशके रहने बाले आये हैं. ओर बुज- दिल्‍ली, शरीरका मोह, गुलामी आय जानते ही नहीं |” मांशियर मोपले महाराजके तीव्र खण्डनसे विचलित न हए । | “आये ? और हिन्दोस्तानी ? आप भी खूब फर्माने लगे । श्रीमान्‌ ! आये गोरे होते थे--आठ फ्रीट ऊँचे, बली ओर सुन्दर होते .थे। पुराने यूनानी या आजकछके जमन छोग जैसे है--बैसे होते थे ।” “मगर, मगर में आर्य-कुल-मातेण्ड, महा-साहेश्वर महाराज संग्रामपुर हूँ...” मोपकेके कानोंमें गोया महा- शजको बातें पड़ीही नहीं | “आपके हिन्दुस्तानी, जेबी कुत्तोंकी तरह कुत्ता-बंश- कलंक होते दे । जरूरतपर न तो जोरसे भूक सके ओरन कर 1 महाराजको फ्रेंच साहबकी बातें अच्छी न छगीं । नशेबाज राजा केवल चापलूसी सुन-सममझ सकता है। सच, सादी बात उसके लिये टेढ़ी खीर है | तहजीबको रू, सुन्दरीको बराङूगीर कर श्रीमान्‌ एक-ब-एक उठ खड़े हुए ।




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