न्याय का संघर्ष | Nyay Ka Sangharsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
424.25 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्याय का संघर्ष न्याय का संघर्ष
अदालत को द्ी इसमें दग़ल है । कदते हें--दमारे गाँव के ज़र्मीदार के
दस गाँव थे । फ़सल में उन्होंने श्रनाज के कोठे भरे । साल फ़्सलें
दो गयीं । ईश्वर की इच्छा हुई, श्नाज मदूँगा बिका । पुनाफ़ा
ढुझ्मा | सेठ जी ने दो गाँव श्रौर ग़रीद लिये ।
श्र शरद शरद
ज़रा खोल कर देखने से मालूम होता दे कि मेरा जिस तरदद
से दित दो, मेरे लिये वद्दी न्याय है । यदि मैं श्रपनी शक्ति से,
चाहे बद शारीरिक द्ो या दिमाग्री, श्रपने दित के लिये काम करने
को दूसरों को बाधित कर. सकता हूँ, तो बढ़ी दूसरों के लिये भी
न्याथ है |
आजकल ज़माना श्रच्छा है । मनुष्य की शक्ति का सार जमा
किया जा सकता दे | झाँ चादिए देखने के लिये ! सेठ जी की
तिजोरी की तरफ़ देखिए । उसमें एक लाख रुपये के नोट नहीं । ज्ञान-
शलाका लगा कर देखिए--तिजोरी में चार लाख झादमी बंद हैं ।
उनकी पीठ पर बोभ ढोने की तेयारी है, द्वार्थों में कुरद्दाड़ी, फाबड़े
श्ौर मेदनत के श्रीज़ार हैं । यदि सेठ जी की इच्छा दो, तो श्रभी यदद
स्थूल प्रत्यक्ष रूप घारण कर काम करने लग सकते हैं । सेठ जी जो
स्वाद कर डालें--्रथ्वी के एक भाग को पलट डालें ।
रद तर श्द
गरमी की रात है, नींद नहीं श्वाती । मेरी जेब में एक चवन्नी है ।
थदि मैं लोभ न करूँ, तो श्राराम से रो रुकता हूँ । चवल्नी में एक
श्ादमी छिपा है । उसके द्ाथ में एक पंखा है । व रात भर मुमे पंखा
कर सकता दे ।
[११1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...