पउमसिरी चरिउ (1948) ए. सी. 4840 | Paumsiri Chariu (1948) Ac 4840

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किंखित्‌ प्रास्ताविक ६७ पछीमा १५-२० वर्षना गाछामां ए विषय ऊपर लखनारा आपणा दैशना हो. शुणे, डॉ. बेनजी-शाखत्री' विगेरे विद्वानोए पण ए ज्ञ धारणानो पुनरुचार कर्यो हतो. ११ अपश्रंश भाषाना विशिष्ट अध्ययन अने अन्वेषणनी आवश्यकता উল ज उपयोगिता, भारतीयभाषाभिज्ञ युरोपीय विद्वानोने प्रारंभथी ज सारी पेठे जमाई दती. आयपरिवारनी प्रवर्तमान भारतीय भाषाओना विकासक्रमनी, तुलनात्मक दृष्टिये पयो. लोचना करवा माटे, ए भाषाना इतिहास, साहित्य अने स्वरूपने समजवानी अनिवाये जरूर छागी हती. वर्तमान देशभाषाओना प्रबाहनो उद्रम शोधवा जनाराओने जणायु के विक्रमना ११ सा शतक पछी ज, ते ते भाषाओनी आरंभिक श्रुटक रूपरेखाओ नजरे पडवा छागे छ, अने ते पीना ज उत्तरोत्तर काछमां धीमे धीमे तेमनो विकास थतो स्पष्ट देखाय छे. एथी पूर्वना समयमा तो, अपश्रश्न संज्ञाधारकते भाषानी विद्वान धारा वहेती देखाय छे जेनुं विस्तृत व्याकरण हेमचन्द्राचायना उक्त प्राकृत व्याकरणमां निवद्ध थएलु छे. एथी णए बम्तु स्वतःसिद्ध थएली जणाई के वर्तमान भारतीय भाषाओना प्रबाहनु उठ्म स्थान, अपभ्रृंशनी धारामां अन्तर्निद्दित थएलुं छे. एटले, ए मादे अपभअंश भाषानी साहिद्यिक सामग्री शोधवा अने मेकववानीं लत्कंठा, ए विपयना अभ्यासियोने थाय ए অনল स्वाभाविक हतु. १२ अध्यापक पिशले (सन्‌ १८७७ मां ) उक्त हेमचन्द्रा चायना प्राकृत व्याक- रणनी सुसंपादित आवृत्ति प्रकट कयों पछी, पोतानुं समग्र लक्ष्य प्राकृतभाषानु एक प्रमाणभूत अने परिपूणै व्याकरण छूखवा तरफ दोयु. तेमना समय सुधीमां ज्ञात জন प्रकाशित थएला विशज्ञाब्ट प्राकृत साहित्ना संकडों प्रन्थो अने हजारो उलेखोनुं अथाग दोहन करी, २५-३० वर्षना सुदीध परिश्रम पछी, तेमणे ए व्याकरण पूर्ण कर्यु जे सन्‌ १९०० मां जर्मनीना स्ट्ास्बुगें नगरमांथी प्रकट यु. ए व्याकरणना उपोद्घातात्मक प्रकरणोमां मागधी, महाराष्ट्र, शोरसेनी आदि बधी प्राकृत भाषाओनुं खरूपालेग्बन करती वखते, क्रमप्राप्न अपश्रंश माषाना खरूपं पण तेमणे संप परंतु सारभूत, सुन्दर निरूपण कयुं. ए निरूपणमां, अपभ्रंश भापाना श्नेमादे जेटली साहियिक सामग्री तेमने उपर्च्ध थर हती तेनी दरक यादी पण तेमणे एक प्रकरणमां आपी छे. ए यादी प्रमणे तेमनी पासे, हेमचन्द्रना प्रात व्याकरण- गत अपश्च प्रकरणमां उदाहरण तरीके उद्धृत करेरां पदयो उपरान्त, सरस्वती कण्ठाभरणमां मछेलां थोडांक अपभ्रृंश उद्धरणों, विक्रमोर्वशीयमां उपलब्ध अपन झनी संवादात्मक थोडीक गीतिकाओ, पिंगलछन्दःसूत्र अने प्राकृतपिंगरूमां उद्धृत অঘভাঁ थोडांक अपभ्रंश पद्यो, तेम ज “ध्वन्यालोक,? 'वेताल्पंचविंशति,” “शुकश- শিলা লা পাপ ञ तन» স্পা -------~- ---------~ ~ ~ ~~ ~ “~~~ ~-+---~ ---+---~ १ जुओ, डॉ० गुणे लिखित, 'एन्‌ इन्टरोडक्शन दु कम्पेरेटिव फाइलोलॉजी? पूं, १९६. ३२ डॉ, ए. पी. बेन,ज-झाज्री कृत 'इत्ोल्युशन ऑफ मामनी' प्र. ९३.




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