त्रिभंगी सार | Tribhangi Saar

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Tribhangi Saar by ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीन तोन पदाथ रखे गये हैं ( भव्यात्मा मावे चिन्तने ) मत्यजीवका उन भार्वोक्तो विचारना चाहिथे ( शुद्धात्मा परं सुद ) सम्परदष्टीको उत्कृष्ठ शुद्ध परमात्माके स्वरूपका अनुभव करना चाहिये। भावार्थं--आख्रवों के मावोंको जानकर उनका त्याग करना चाहिये। आस््रवोंसे भिन्न अपने शुद्ध स्वभावका मनन करना ही हितकर हे । क সিসি १०८ जीवाधिकरण । त्रिमंगी प्रवेस प्रोक्तं, भावै मय अटोत्तरं । मिध्यात मय संपूर्ण, रागादि मर परसितिं ॥ ६ ॥ अन्ययार्थ-- ज़िभंगो प्रवेस ) तीन भंगोंकों लेकरके ( मिथ्यात भय संतृण ) मिथ्यादर्शनसे प्रूणे (रागादि मल पूरितं ) राग द्वेषादि मलसे भरे हुए ( सब अठोत्तरं भाव ) एकसोआठ १०८ आख्रवके जीवाधिकरण रूप भाच ( प्रेक्त ) कहे गए हैं । भावार्थ--जिन जीवॉके भावोंके आधारसे कर्म आते हैं वे सुल भाव १०८ एकसोआउठ हैं| जैसा श्री तत्वाथेसूत्रमें कहा हे --- आच संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकप्रायविशेषेन्निखिस्िशवतुश्चकशः ॥ ८-६ अ० | १- संरम्भ २- समारम्भ, ३-आरंभ | इन तीनकों मन वचन काय तीन योगोंसे गुणा करनेसे नो भाव हुए | इन नोको कूल, कारित, अनुमति इन तीनसे गुणा करने पर सत्ताईस भेद हुए। हरएक सत्ताईस भावकों क्रोध, मान, माया, लोभ, चार कषायोंसे गुणा करने पर १०८ भाव होते हैं। किसी कार्यकों करनेका संकल्प या सन्‍्तठय करना संरम्भ है। उसके लियि सामग्री एकच्र करना समारंस है ! उस कामको करने लगना आरंभ है। अपने मावको मनसें करना सन संरम्भ है, वचनसे प्रगट करना वचन संरम्भ है, कायसे संकेत करके बताना काय संरम्भ हे । इसी तरह सन बचन कायसे समारंस व आरंभ भी होता हे। इन नौ प्रकारके भाचोंकों यातो स्वयं काम करनेके लिये, या किसीसे करानेके लिये, था सम्मति देनेंके लिये करनेसे सत्ताईस भेद होजाते हैं। हरएक भाव मन वचन कायके द्वारा चारों कषायोंमेंसे किसी कपायके রী ५२... , ৬০ ~ ७७६... «7 শপ পট পট নি ৫ ॐ ১ ४.४ পর পরে এ ভে চে এ পর্ধা কা টি ~. +~. ज +~ 1 ০৬ রেগে কে চকে নক + ध গে ট্রাকে ইক চি ক সক ॥ | | | >49# শান 2६... ১৬ कर ॥ ५ ४ >जह---28--498--5:0---59--59- স্নো >~




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