धर्म, सदाचार और नैतिकता विषयक निबंधों का संग्रह | Dharam, Sadachar or Naitikta Vishyak Nibandho Ka Sangrah

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Dharam, Sadachar or Naitikta Vishyak Nibandho Ka Sangrah  by महात्मा टालस्टाय - Mahatma Tolstoy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ঘন वया है ? १७ कहीं नजर आती है। कारण मनुष्यों की समानता में विश्वास रखने वाले किसी नवीन घामिक सिद्धान्त ने ज्योंही किसी समाज में जन्म लिया कुछ लोगों ने उसकी तद्विपयक शिक्षा को तोड़-मरोड़ कर उसके मौलिक पहलू पर पर्दा डालने का प्रयत्न किया, क्योंकि असमानता में ऐसे लोगों का स्वार्थ निहित था.। जहां कहीं किसी नये धर्म ने जन्म लिया वहां सव जगह हमेशा ऐसा ही हुआ | यह सव अधिकार जानवूझ कर नहीं किया गया । ऐसा सिफे इसलिए हुआ कि जिन लोगों का स्वार्थ 'असंमानता में ही सिद्ध होता था, उन्होंने अर्थात्‌ सत्तावारियों और घनवानों ने अपनी स्थिति में परिवर्तन किये विना ही धार्मिक शिक्षा के अनुसार अपनी असमान स्थिति का _ ओऔचित्य सिद्ध करना चाहा और परिणामस्वरूप घामिक दिक्षाओं का ऐसा अर्थ प्रचलित किया, जिससे असमानता का संमर्थन होता था। इस प्रकार- घर्म का पतन हौ जाने पर स्वभावतः जो छोग दूसरों पर मनमानी चलाते थे, वे मी अपने आचरण को उचित समझने लगे और जब जन-साघारण में ऐसे कलुपित धर्म का प्रचार हुआ तव उनके मस्तिष्क में मी यह विचार घर ` कर गया कि वे जिस घमं को मानते ह उसके आदेशानुसार उन्हें सत्ता- ` घारियो के अधीन रहना चाहिए मौर उनकी आज्नामों का पालन करना चाहिए । & ५ मनुष्य-जाति के सब प्रकार के कार्यों के मूल में तीन प्रेरक कारण हैं : अनुभूति, विवेक और संकेत । इनमें से अन्तिम वस्तु वही है जिसको डाक्टर सम्मोहन शक्ति कहते हैँ अनेक वार मनुष्य अपनी आंतरिक प्रेरणा 1इसका मतलब यह हुआ कि परसात्मा की नजर में हम सब समान हैँ और इसलिए मानवीय कानून और रिवाज ऐसे होने चाहिए जो मनुष्य- मात्र को जीवित एवं स्वतन्त्र रहने ओर सुख की खोज करने का समान अधिकार देते हों । इसके अलावा यह भी कि मनुष्य आपस में एक-दूसरे के साथ भाई-भाई का-सां वतवि करे 1




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