अद्वैत - वैदान्त के विभिन्न सम्प्रदायों में साक्षी का स्वरूप और कार्य | Advait - Vaidant Ke Vibhinn Sampradayon Men Sakshi Ka Swaroop Aur Karya

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Advait - Vaidant Ke Vibhinn Sampradayon Men Sakshi Ka Swaroop Aur Karya  by रंजय प्रताप सिंह - Ranjay Pratap Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंग हैं। ऋग्वेद के तृतीय मण्डल में भी अद्वितवाद की प्रवृत्ति स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती है, जिसमें यह कहा गया है कि एक ही, जो विश्व है अर्थात्‌ सब कुछ है, इस चराचर तथा उड़ने वाले समस्त जगत का स्वामी है- एकदुट्ठवं पत्यते विश्वमेक॑ बरत्यतत्रिविषएणं विजातम्‌/? इस मंत्र में दो पद “एकम्‌” और “विश्वम्‌” इस तथ्य को प्रकट करते हैं कि वह मूल तत्व एकः दै तथा “सब कुछ” वही है। इसके अतिरिक्त तृतीय मण्डल में ही एक पूरा 22 मंत्रो का सूक्त हे, जिस्म प्रत्येक मंत्र के चतुर्थं चरण में यह ध्रुवपदद आया है कि “महद्देगनामसुरत्वमेकम” जिसका अर्थ है देवताओं के अन्दर विद्यमान बल या सामर्थ्य एक ही है। इस प्रकार यह पूरा सूक्‍त ही देवताओं के एकत्व को प्रतिपादित करता है। ऋग्केद मे नासदीय सूक्त का अपना विशेष महत्व है। यह सूक्त दार्शनिक गम्भीरता का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें नवीन परिकल्पना के साथ अद्वैतवादी दृष्टि परिलक्षित होती है। यह सूक्त गढ़ सहस्यमयी आध्यात्मिक चिन्तन धारा का परिवायक है। इस सूक्त मेँ यष्टि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अत्यन्त सूक्ष्मता से विचार किया गया है। इसलिए यह सूक्त शष्ट सूक्त! के नाम से भी जाना जाता हे। नासदीय सूक्त म कुल सात मंत्र है। यूक्‍त में ऋषि कहते हैं कि-'नासदासीन्नो-सदासीत तदानों ... দি अल वा न वेद/ इस प्रकार नासदीय सूक्त के तीन भाग हैं तथा ये तीन स्थितियों में प्रबलतम रूप में अद्वित तत्व का बोध कराते हैं। प्रथम भाग में इस सृष्टि के पहले की स्थिति का वर्णन है। उस अवस्था मँ सत्‌-असत्‌, मृत्यु-अमरता, अथवा रात्रि-दिवस कछ भी नहीं । महाभाग्यादृदेकताया एक प्रवात्मा बहुधा स्तूयते/ एकस्थत्मनो5न्ये देवा प्रत्यङ्गानि भदन्ति// निक्त 7-4 ° वऋग्वेद 3,८54.8 ও আন্টি 3/55 4 पवयति 4 /4179 /1-7




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