ब्रह्मविद्या - रहस्य | Brahmavidya - Rahasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्रह्मविया-रहस्य [ ७ सप्टि के पू्व शरीर माया तथा श्रज्ञान होने के पश्चात केवल शरोर की उपाधि रख कर व्यक्तिगत प्राणी परिच्छस्र थे। इसी कारण ईश्वर श्ादि सष्टिमें जीवों के नरिगशात्मक श्रज्ञान का झंश कम झधिक रहने के श्रचुसार छनेक योनियाँ हुईं' श्र सप्टि का नियम इस प्रकार हुआ कि उसमें दरएक प्राणी को एक समय मनुष्य-योनि प्राप्त हो तथा श्रात्मोन्नति का श्रवसर मिले । श्ंक रे-झुद्ध सतोगुण में शुद्ध चेतन परत्रह्म सचिदानन्द का जा चिदाभास है वह श्रौर शुद्ध चेतन परन्रह्म सचिदानन्द दोनों के संयोग को परमात्मा कहते हैं; केवल चिदाभास को इश्वर कहते हैं । शुद्ध सतोगुण उपाधि के कारण चिदाभास श्र्थात्‌ इश्वर नित्य शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सर्वव्यापक, स्वेशक्तिमानू, से - ज्ञादि लक्षणु-सम्पन्न, सण्टिकी उत्पत्ति, स्थिति, प्र लय करनेवाला, श्रौर जीवों के पाप, पुण्य कर्म के फल का नियत करने वाला है । किन्तु शुद्ध चेतन परत्रह्म सबिदानन्द श्रसंग, श्रकत्ता; श्रभोक्ता सदा ,एक रस है। शुद्ध चेतन परत्रह्म सचचिदानन्द्‌ को ज्रह्म श्रथवा चेतन भी कहते हैं । मलीन सत्तोगुण में शुद्ध चेतन परत्रह्न सचिदानन्द का जो चिदाभास है वह श्रौर शुद्ध चेतन परत्रद्म सचिदानन्द दोनों के संयोग को जीवात्मा कहते हैं श्रीर केवल चिदाभास को जीव कहने हैं । मलीन सतोगुण उपाधि के कारण जीब्र बद्ध है श्रौर श्रल्पशक्तिमान, श्रल्पज्ञादि है । किन्तु शुद्ध चेतन परन्नह्




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