जैन शोध और समीक्षा | Jain Shodh Aur Samiksha
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)11
सोरठा, चौपाई, शरुजंगप्रयात झादि छुल्दों का सफल प्रयोग है । ऐसा प्रतीत होता
है कि कवि भाव ध्ौर भाया दोनों का सफल चितेरा था ।
केवल नेमि-राजुल पर ही नहीं, भ्रपितु भ्रन्य कथाझों का आश्रय लेकर भी
अनेक खण्ड काव्यों का निर्मारा] हुआ | १७वीं शताब्दी के कवि पं० भगवंतीदास
की 'लघुसीतासतु” एक भ्रच्छी रचना है । इसमें सीता भर मन्दोदरी के संबांदों
के माध्यम से रावण झौर मन्दोदरी के मानसिक श्रन्तद्व न्द का चित्रण है।
भाषा झौर भाव दोनों ही उत्तम कोटि के हैं । ब्रह्म रायमलल का 'हनुमच्चरित्र'
भी इस दिशा की एक मंहस्त्वपूर्ण कड़ी है । इसमें वीररस-परक जीवन का चित्रण
है । उनके पिता पवनञड्जय और माता अञ्जना जन धर्मानुयायी थे। हनूमान
गर्भ में ही थे कि सास ने एक अ्रम-पूर्णा सन््देह के कारण प्रञ्जना को घर से
निकाल दिया । एक कठोर भ्रौर तिरस्कृत जीवन बिताया भ्रञ्जना ने। केश्णा
जैसे साक्षात् हो उठी । सती, पति-निष्ठा, गर्भभारालसा वह एक भ्रनन्य भक्ति के
साथ दिन बिताती रही । कवि ने उसके विरह का मार्मिक चित्र खींचा है। इसी
बीच हनुमान का जन्म शौर लालन-पालन हुश्रा फिर, पति-पत्नी का मिलन |
संयोगावस्था, किन्तु भ्रव यौवन की बाढ चुक गई थी । यह शरद ऋतु थी, तो
हनूमान ने राम की जै-जै के गीत गाये । ऐसा सरस खण्ड काव्य मध्यकालीन
हिन्दौमें दृढे भी नहीं भिलेगा। महानन्द के श्रञ्जनामुन्दरीरास' मँ भी
श्रञ्जना के विरह का सजीव चित्रराहुभ्राहै | कथाके बीच से उभरा यह विरह
हार मेँ इृन्द्रमरि-सा प्रतिभासित होता है)
हेमरत्नसूरि की 'पद्मिनी चौपई” सौन्दर्य और प्रेम के रंगों से बनी थी ।
कवि सौन्दये के नाना चित्रों को प्रेम की तूलिका से खीचता गया है। पढ़ कर
पाठक विमोरं हए विना नहीं रहता । उसमे मादकता है, किन्तु सात्विकता भी
कम नहीं, उसमे जलने की ताकत है, किन्तु शीतलता भी अल्प नहीं, उसमें
विरह है, किन्तु संयोग के क्षण भी भुलाये नहीं जा सकते । पदिमनी का वह रूप,
वह विरह, वह संयोग भुलाये नहीं भूलता, हटाये नहीं हटता, जैसे सदा-सदा के
लिए खिंच के रह गया हो ।
हिन्दी का मध्यकाल रूपकों का युग था। कोई ऐसा भक्त कवि नहीं,
जिसने झपने भावों की प्रभिव्यक्त करने के लिए रूपकों का सहारा न लिया हो।
क्या सूरदास, क्या तुलसीदास और क्या कबीर दास | जैन कवियों ने भी उसी
माध्यम को अ्रपनाया । उनमें एक विशेषता थी कि उनकी अनेक कतिया অনু
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