श्री शुकदेव जी का जीवन चरित्र | Sri Shukdevji Ka Jeewan Charitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : श्री शुकदेव जी का जीवन चरित्र  - Sri Shukdevji Ka Jeewan Charitra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प शकदेवज्ोका जीवनचरित्र आप किस निमित्त चिन्ता से भरे ब्याकल देख पंड़तेंहों सो हम ते कारण कहीं ॥ २९७ ॥ व्यास उदाच | अपन्रस्यगतिनास्तिनसखंमानसततः ॥ तबुथढ खतडचाहाचन्तयामपनपनः ॥ ९८ व्यासजी बोले न तो अपन्र की गति याने पर्हीन सनध्यकी पति नहीं होती और न मनमें कभी सख होता हे इसकारण से में दुगखी होकर बारबार चिन्ता करता हूं॥ २८.॥ . तपसातापयास्यद्यकदव बाउ्छताथदथू इतिचिन्तातुरोस्म्ययत्वामहंशरणंगतः ॥ २९ अब में अपना सनोरथ पूर्ण करनेवाले किस देवताकों तप करके सन्तु करूं इस चिन्तासे व्याकुछहूँ सो आपकी शरण प्रायाहूं ॥ २६. ॥ सवेज्ञोडसिमहूर्षत्व॑ कथयाशकृपानिधे । कंदेवंशरणयामि योमेपत्रंप्रदास्यति ॥ ३० ॥ हे कुपानिय महष तम सवेज्ञहों कहिये किस देवता की मैं घरण में जाऊं जो दमको प्रत्रप्रदान करे ॥ ३० ॥ संत उबाच इतिव्यासेनप्टस्त नारदोवेदविन्सनिः ॥ उचाचपरयापध्रात्या कृष्णप्रतिमहामनाः ॥ ३१ . सतजी बोले कि इसप्रकार व्यासजीके प्रछ्ने पर नारदमनि हू 2७ परमप्रसन्न होकर ब्यासजी से बोले ॥ ३१ ॥ नारद उवाच॑ | पाराशयमद्दाभाग यत्वेछच्ठसिमामिह ॥ तमेवारथपुराप्ट पिनामेसघुसुदुनः ॥ ३२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now