रसगंगाधर | Ras Gangadhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पं रसगंगाधर एक समीक्षार्सक प्श्ययन इस प्रमज् में मम्मद के काव्य नक्षण को खण्डन किया है । उसके दो भाधार हैंन रै भ्नुभव प्ौर २ स्पाय । मिवसयमुन्न पदुयते झाहि लोक सावहार प्नुभव के उदाहरग है और काव्यस्य किस बूतति हे रहता है इत्यादि स्पायाम- लम्बित विचार है | पर्ण्डितराज मम्मद सौर झभिवय शादि को पुस्य सालकर चसे थे कित्लु उनका बह पूण्यभाव भी सबंध स्थिर नहीं पह्ा 1 सतन्वनभिड ये होने पर अह समद का भी विरोध कर बैठे । काव्यलक्ष इसका उदाहरण है । मम्मद के काव्पसक्षण को सण्डित करते समय काम्यल्व को लेकर जो विशार किया गया है उससे ऐसा लगता है कि रसगड्राधरकार को हर्ट काव्य के स्बहूप निश्चय पर ही टिली थी ने कि उसके लक्षरग-तिशथग पर | काब्यत्व सास्तव में कबय को स्वरूप जैसे गो को गोखब ही हो सकता है लक्षण नहीं । यह परिइितराज के पार्िश्स्य को दोप है । कुछ ऐसे बिययों पर भी पण्डिवराज की महुश्यपूर हरिट गयी जो कोठय में .. सभी सालड डिक के दर सामान्य रूप हे स्पीकर सो किये गये थे विस्तु सनक स्वरूप व लक्षण किसी ने नहीं कि था । एव हरा से लिये चिमहकार को लिया जा सकता है । पर्ण्शितिराज में चमत्कार बचा है इसको रपट किया है । मिरलु यह हफष्टीकररण गुद्द नैयामिक फंस में किया गया है से सदमि नैवाधिक कप में अह चमरकारत्वविधिष्ट इत्यादि रुप में सिद्ध हो जाता है तथाति झालडुरिकों की लुद्टि महीं कर पाता । प्रस्त में यह कहां जा सकता है कि कम्य लग के प्रमर्तर प्बादय सप में प्रवहुणाणीन दो धारामों में से एक को स्वीकार कर उरो दूसरे में युक्तितूर्ता तकों मै प्ष्ठ सिद्ध करना पण्डितराज का ही कार्य है । काव्य-हेतु काइ्य को कारण मात्र प्रतिभा काव्य के हेतु के सम्बन्ध में पण्डितराज का यह बचन है - तह्य च कारों कविंगता केबला प्रतिमा । 1 प्रात क्ि में रहने बाली एक शक्ति-विशेषनप्रतिभा ही काष्य का कारण है | यहुं प्रतिभा बास्तब में है कया ? इसके उत्तर में कहा है- काव्यघटनामुकूलशब्दारमपिहिचति 1 प्रधत काव्य को मसाने के भनुकूल शब्द भौर कपलीकर पलवरलानदर ताजा इजिलकिक १४. पारिं. छनभ | १४. रस पृ. मय १६... अही |




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