नया युग नया मानव | Naya Yug Naya Manav

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Naya Yug Naya Manav by मोहनलाल महतो 'वियोगी ' - Mohanlal Mahato'Viyogi'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर बस जॉर्ज साहब पैर पटककर बोले---“तुमने मेरे मुह में कालिख पोत दी । यदि लड़की को सभ्यता के तरीके सिखला देतीं, तो ऐसी भद्द न होती ।“ रानी ने ललाट पर अखि चाकर कहा--“मह्‌ हौ गई, साई गांड । जरा बतलाना तो डियर 2? जॉर्ज कहने लगे--- लीला नाचने लगी, तो* सीना उभारने के बदले में सिकुड़ गई ।” जब बंबई के करोड़पति सेठ अहमद भाई ने हाथ भिलाना चाहा, तब इसने वेहूदे हिंदुस्तानियों की तरह दूर से ही हाथ जोड़ दिया । जब मिस्टर चोपडा ने जाम' आगे बढ़ाया, तो पीने से मुकर गई, और विख्यात ठेकेदार तलवारसिह के पास न बैठकर मेरे पास आकर बंदरी की तरह बैठ गई । बतलाओ तो रानी, यह सभ्यता हैं ? उन सभ्यों ने मन में क्या सोचा होगा ? सभी मुझे जंगली, हिंदुस्तानी और मूर्ख कहते होंगे । तुम लीला को बतलाओ कि सभ्य-समाज में कैसे मिला जाता है ।” अपने परम सभ्य पति के इसी भाषण के बाद से रानी ने लीला को एक घंटा नित्य सभ्यता का पाठ पढ़ाना आरंभ कर दिया, जो महीनों तक चलता रहा । सभ्यता कोई छोटी चीज़ तो नहीं है, जो दस-पाँच दिनों में ही कोई उसका मर्म समझ ले । किसी पत्थर के ढीके को गढ़कर मूर्ति बनाना आसान नहीं है । कलाकार और पत्थर, दोनों में धीरज चाहिए । ईस्पात की बनी चोखी छेनियों की हज़ारों-लाखों चोटें खा लेने की ताकत जब तक पत्थर में न होगी, वह अनगढ़-का-अनगढ़ ही बना रहेगा, और बाज़ार में उसकी कोई प्रतिष्ठा न होगी । सभ्य बनने के लिए भी बड़ी तपस्या चाहिए और लीला ने जी लगाकर तपस्या मं अपने को तपाना शुरू कर दिया । जब साधारण नियम वह सीख चुकी, तो उसकी स्नेहमयी जननी ने बारीक ज्ञान देने की ओर ध्यान दिया । उन्होंने




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