प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास भाग - 4 | Prachin Bharatavarsh Ki Sabhyata Ka Itihas Bhag - 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र १] विक्रमादित्य श्रोर उसके उत्तराधिकारी । [७ ” ~~ “~~~ ~ ~~--------- ~~ -------------------------------~-------~----------~--------~-~~ ~~ भारतवकषे का प्रत्यक परिडित उस शोक का जानता हे जिसमें कि विक्रम की सभा के नोरलों का नाम है # बुद्ध गया के संवत्‌ १०१५ अर्थात्‌ सन्‌ &४८ इस्वी के एक शिला लेख में हमं निलन लिखित वाक्य मिलते है- (“विक्रमादित्य निस्सन्देह इस संसार मे बडा प्रसिद्ध रज्ञाथा। इसी प्रकार उसकी सभा में नो बड़े विद्वान थे जा कि नवरलानि' केनामसे विश्यात है” । इस कथा की प्राचीनता मे कई सन्देद्‌ नदीं ই। इन प्रसिद्ध विद्वानों में कालिदास सब से मुख्य हें। राजतरंगिणी में लिखा है कि तारमान की म॒ल्यु के उपरान्त उसका पुत्र प्रवरसेन काश्मीर को राजगद्दी पर अपना अधिकार प्रमाणित नहीं कर सका ओर भारतवर्ष के इस माननीय सम्प्राट उज्जनी के विक्रमादित्य ने श्रपनी सभा के मातृगुप्त नामक प्रसिद्ध विद्वान का काश्मीर का राज्य करने के लिये भेजा । मातृगु् ने श्रपने संरक्षक की मरत्यु तक राज किया ओर तच बह यती दाकर बनारस के चला श्राया ओर काश्मीर में प्रवरसेन का राज्य हुआ । डाक्टर दाऊ- दाजी ने पहिले परिल इस साहसी सिद्धान्त के प्रकाशित किया कि यह मातगुघ्त स्वयं कालिदास ही थे। इस विद्वान ने च्रपनी सम्मति केजेा प्रमाण दिप ह उनका विस्तार पूर्वक चरणेन करने की हमे श्रावश्यकता नहीं है श्रोर यहां पर इतना ही कहना आवश्यक हागा कि यद्यपि उनके प्रमाण सम्भव हैं रन्तु वे निश्चय दिलाने वाले नहीं है । इसके विरुद्ध काश्मीर के एक कवि त्षेमेन्द्र का एक ग्रन्थ मिलता हे जिसमें कि उसने # वे ये हैं धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिह, शंकु, षेताछभट्ट, घटकपेर, कालिदास, वराह्ममिहर, ओर वररुचि ।




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