पंजाबी साहित्य का नवीन इतिहास | Punjabi Sahitya Ka Navin Itihas

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Punjabi Sahitya Ka Navin Itihas by ज्ञानेन्द्र - Gyanendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पंजाबी भाषा का उद्मद तथा विक्ञास रू केवत्त विद्वान ही समभते हैं तथा लिख सकते है। यह वोली व्याकरण के नियमों पर श्राघारित है। दूसरी बोली को हिन्दू त्तथा मुत्तलमान दोनों बोसते श्रौर समभते है।' इस प्रकार कहा जा सकता है कि सन्‌ १००० ई० के श्रास-पास पंजाबी भाषा का उद्भव पेशाची घ्रपब्र श से हो चुका था, परन्तु श्ररवी, फारसी, श्राभीरी तथा अन्य य्रनेक भाषायों का भी इस के स्वरूप-निर्माण में पूरा योगदान रहा है । पंजाबी का दिकास सुविधा के लिए पंजाबी भाषा के विकास को पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है-- ₹ प्रथम विकास--१६वी शती से पूर्व का युग । २८ डितीय विकास--१६वी तथा १७वी दाती का युर । है. तृत्तीय विकास--१पवीं झती का युग । ४. चतुर्थ विकास--सन्‌ १७९६९ से १८६० तक का युग । ५. पंचम विकास--सन्‌ १८६० रे अत तक का युग । पंजादी भाषा की कुछ मलक हमें सर्वप्रथम अव्दुरं्मान के 'सन्देश रासक' में मिलती है । हिन्दी के विद्वानू इसे हिन्दी का ग्रस्य स्वीकार करते हैं, परन्तु इसमें पजावी का भी पर्याप्त रूप विद्यमान है। कारण यह है कि ११वी शती में शौरसेनी तथा पेशाची ग्रपश्न दा एक-दूसरे के कुछ झधिक निकट थी । फिर उस काल भे भाषा श्पश् श से विकसित हो रही थी । सन्देश रासक' की मापा को हम भाज को भाषा तथा अपर के वोच का रुप मान सकते हैं । भददुरंहमान मुलतान का रहने वाला था, जहाँ बेठकर हो उसके द्वारा इस ग्रंथ को रचना हुई थी । पतः सन्देश रासक को ही पंजाबी के प्रथम रूप को ग्रंथ कह राकते हैं।




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