चार परतें | Char Parten

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उपन्यास ‘चार परतें’ की लेखिका बिहार की प्रसिद्ध साहित्यकार स्व प्रकाशवती हैं। इसका प्रकाशन अप्रिल 1962 में दिल्ली के प्रकाशक राजपाल एण्ड संस ने किया था।

अपने समय का बहुचर्चित उपन्यास है जो मानव मन की संवेदनाओं और पति-पत्नि के टूटते संबंधो को अत्यन्त ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करता है। कदाचित इसे प्रयागराज या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय मे संदर्भ पुस्तक की श्रेणि में रखा गया था।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सह॒ते ऊब उठी थी, इसीसे उनसे बन्धन खोलने को मैंने प्राथना की थी !” श्रौर फिर मूर्छा के कारण प्रगते दिन के लिए तहकौकात स्थगित कर दी गई । सभी लोग चले गये हैं । फिर वही सुनाप्तत है। पग्राश्चयं है, श्रपना विजय ही मुखबिर बना ? जिस पिता का रक्त उसकी शिराश्ों में है, चह श्रसत्य हो उठा भ्ौर मेरी यह तियंक्‌ू-साधना ऊपर हो उठी ! आह, पुरुषोत्तम, कितने रूपों से छल रहे हो ! तुम जन्म-जन्मान्तर से मुझ प्यासी को श्रुला रहे हो भौर मैं तुम्हारे ही पीछे भागती जा रही हूँ ! निष्ठुर, मैं दो युग-युग से तुम्हारे लिए रोया करती हैं--तरेता में गर्भभार से कातर सीता के वेश में, द्वापर में राधा बनकर, कलि के एक चरणा में मीरा होकर और फिर इस वांछा के रूप में जन्म-जन्म की प्रतृष्ति, भ्रधूरी कामनाएँ लेकर तुम्हे द्रुते श्रई तो पुरुषोत्तम बनकर तुमने एसा ফলাথা कि सभी जन्मों की कठेरता पराजित हौ रही । नहीं, नहीं, तुमने नहीं । तुम तो आश्वासन देकर ही गए थे, मुभे ध्वस्त किया भ्रपनों ने ही । वह सन्ध्या कितनी भयानक धी, जब मेरी खाट पर फ्रुककर माँ रो रही थी-- -+बांछा को क्‍या हो गया, विमल ? पलकें उधाड़ते ही जो देखा--रोम-रोम' काँप उठा, लाल ग्र, गले में रुद्राक्ष-माला, और लाल वस्त्र में लिपटा एक हिसक-सा व्यवित ! च्रृणा से मूह फेर लिया मैंने । . माँ ने अंधविश्वास भर मूढ़ स्नेहवश पिताजी से छिपाकर ঘুঙ্গী उपचार के लिए कामहूप से श्राए अपने एक दूर के श्रघोरी जैसे रिब्ते- दारको बुलाया था) ' निस्तन्ध रात में किसीकी काँटेन्सी उँगलियाँ ललाट पर चुभी और चींद खुल गई। पहचानने में देर न लगी कि उसी प्रेतसिद्ध से माँ मेरी फूंक करवा रही है। , उसे कहते सुना---'घवराश्रो मत चाची, मैं ऐसा बाण मारूँगा कि पुरुषोत्तम वहीं चित्त हो जाए 1' नहीं विमल, भूलकर भी एसा मत करना! मुभे सिफ वांछा १५




User Reviews

  • Esvee

    at 2020-03-25 07:29:44
    Rated : 8 out of 10 stars.
    उपन्यास 'चार परतें' की लेखिका बिहार की प्रसिद्ध साहित्यकार स्व प्रकाशवती हैं। इसका प्रकाशन अप्रिल 1962 में दिल्ली के प्रकाशक राजपाल एण्ड संस ने किया था। अपने समय का बहुचर्चित उपन्यास है जो मानव मन की संवेदनाओं और पति-पत्नि के टूटते संबंधो को अत्यन्त ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करता है। कदाचित इसे प्रयागराज या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय मे संदर्भ पुस्तक की श्रेणि में रखा गया था।
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