मृत्यु - रहस्य | Mrityu Rahasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पक सत्संग की कथा श्र श्रौर दाह कर्म करके लौटने भी न पाये थे कि रास्ते में दौइती श्औौर हांपदी हुई स्त्री ने आकर ख़बर दी कि उस ज़ख़मी भाई की भी मृत्यु दो गई, दम अमागे अब उसी अपने प्यारे श्रौर - एक मात्र भाई का दाद कम करके श्रा रहे हैं, घर में घुसने को जो नहीं चाहता, घर काटने को दौड़ता सा दिखाई देता है, इसीलिये मद्दाराज घर न ज्ञाकर श्रापकी शरण में आया हूँ । ( झात्मवेत्ता ऋषि ने उसकी दुःखित श्वस्था और उच्च जाति के दिन्डुओं का इलितों के साथ दुर्व्य॑वद्दार का स्मरण करते और डुःखित होते हुये सीतला को सान्त्वना देते हुबे प्रेम सें घिठलायाः।-- ,. इसके वाद सी सत्संग में एकत्रित घुरुष स्त्रियों में से किसी ने श्रपनी सम्पत्ति खोये ज्ञाने की कथा खुनाई,किसीने ्पशियोग _ मैं हार जाने की चर्चा की, जिसके परिणाममे श्रपना द्रिद्र दो जाना चणुंन किया, किसी ने बन्घु वान्धर्चों के दडुन्यंबद्दार- की शिकायत की, निदान इसी प्रकार के कथनोपकथन में संग का नियत समय समाप्त द्ोगया, ऋषिके वचन खुनने का श्रवसर किसी को न मिला श्रौर क्रियात्मक - रूप से झाज का, संग “ मरसिया रूचार्नों दी मजलिस”' दी बना रद , आत्मचेत्त ऋषि ने अगले संग में उपदेश देने का चचन देकर श्वाज के संग का कार्य समाप्त करते हुये, संग में उपस्थित नर नास्याँ को इस प्रकार का श्रादेश दिया! झात्मवेता--वड़े से वड़ दुगख,बड़ी से दढ़ी मुसीवतों के कष्ट, करुणा निधान, करुणाकर, करुणामय प्रभु के स्मरण से कम दोते श्रौर जाते रदते हैं। वही श्रसद्दायों का




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