हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण : खंड 1 | Hastlikhit Hindi Pustko Ka Sanshipt Vivaran : Khand-1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १६) `
कवियों का मी झह्म्युदप दभा। कपिपत कथाझों
से हिंदी साहिस्प शरीर ष्टी पहीवृद्धि दया पुष्टि
करनेवाले मुस्तप्तमान कवि सी इसी समय में इुप्फ
प्छ पष विदेशीय एौषा मार्तवप॑ की प्रतिकृक्त
माघ धायु में परिणोषित और पश्नवित मे हो सका।
অহ इसी काल में छगा झोर इसी में मुरक्ा मी
शया। मर्दों इस काल में मुखजमानी दाज्य का
अम्युद्य हधा वहीं साथ दी साथ उसकी जड़ में
স্থল শী লগ णया पौर अत मे रर कलमं
टुसका सघूल नाश मी हो गया, पहाँ हिंदी
साहिस्य मी इश्नति के शिखर पर पहुंचकर ক্ষ
कार फे मापा जाल में ऐसा फंसा कि पइ झपना
सका सरूप ही मूलकर भपनी झरमा का तिर
स्कार कर बाहरी ठार बाट और शारीरिक सजा-
धट बतावर में भौरंगज़ेब के समय के मुसलमानी
रास्य की माँति क्षा गया। सश्यी कविता झपने
खच्च सासन से गीचे गिर पडी भौर झत में उत्तर
काए में पक प्रकार से यिक्षीन द्वो गई | उत्तर काल
में ज्िटिश शासन की झड़ समी, मुसलमानी भस्पा
सारे से साँप लेने का समय मिक्षा, पूरे और
पश्मिम का सम्मेशन भा, भ्राध्याध्मिकटा और
भौतिकता में घोर सप्राम ग्राश्म हुआ। इस सब
জাতী ক্যা यह परित्षाम इशा कि भाव, पिश्वाराति्
प्राणीन पुस्तकों हो सोज की ज्ञाय तो समावगा दै
कि अनेक प्रथ-रस्मों का पता चक्ष जाय | मध्यकात
का हिंदी साहिस्य पै मुबय मार्गों में विमक्त होता
ই झ्र्थात् (१) एकेश्यरथादी कि (२) राम मक्त और
(१) कृष्मर कपि (४) अजकारी कवि (1) कहिपत
कथाओं के कवि झोर (६) फुटकर कवि । छर पा
थर्शमान काल में मध्यकाल का अंतिस पर विकृत
अश झाठा है, पर इस काल की विशेषता पथ দখা
की झअपिरूता में है। हिंदी दस्तक्िजित पुस्तका की
खोज का सदध विशेष कर पूर्य काल भौर मध्प काल
से है, पर इस कोश का अपिकांश काम संयुक्त प्रदेश
में हाने के कारण मध्य फाछ कौ सामप्री विशेष कर
प्रस्तुत हुई है। इस सत्तिप्त विदरण में सब मिश्रा
कर १७४० कवियों भौर टडतरे क्झाभयब्ाताम्ों का
दया २५६ प्रयो का ररे दै । ख सस्या
से ही इस काये के पिस्तार भौर महत्य का अजु
मोम किपा ज्ञा सकफठा है। किस किस कबि के
विषयमे किम छलि ল बातों का पता क्गा
है, इसका विवरण देने से इस प्रस्तावना का
आकार वहुत वढ़ शापगा भौर इसकौ फोई भाय
शयकता भी गहीं है | परत संशेप में हम वो चार
बातो का उस्लेख कर देता चाहते हैं । किसी पिपय
म सहाँ किसी एक रिपो का शस्य रिपोर से
में परिवसतेत होते खूगा | कषिता-युग की समाप्ति | विरोध ता था, पहाँ पर झ्जुसभधात कर पया
होकर गध युग का प्ाए्म हुझआ। इस काल में | शक्ति विश्चित मत देसे का उद्योग किया गया ह--
: साहिस्प-सरिता नए वेग प्रौर नप अह्न सं पूरित
दोकर बदलने छगी ।
भतएव हिंदी साहित्य क॑ इतिहास के पूर्व
काल की मुठ्यता चौर कार्प्पों में है। परंतु स्थिति
दी प्रतिकूलता के कारए इसमें से अधिकांश काप्पों
का अब पता महीं अइछता। यहि राजपूतामे में
(१) मूपदि छव दम स्कथ मागबत् का लिर्माय्य
काक्ल तीसरी रिपोर्ट में छ० १६४४ (प-११५) माना
णया है; परतु निश्नलिखित कारणों से १७४४
मामना ही ठीक है--
(पर) इस प्रथ की अठारहबी शठाप्र्दी से पूषे
| की कोई प्रति नहीं पाई आती |
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