नोबल पुरस्कार विजेता साहित्यकार | nobal Puruskar Vijeta Sahityakar

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nobal Puruskar Vijeta Sahityakar by ठाकुर राजबहादुर सिंह - thakur rajbahaadur singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुरी प्रधों १६०१ ६० में साहित्य का नोवल पुरस्कार सुली ध्ूधों को मिला। यूरोप में फ्रांस का साहित्य बहुत पहले से श्राइ्तीय रहा है । शताब्दियों से फ्रांसीसी भाषा यूरोप की सर्वेश्रेष्ठ साहित्यिक भाषा मानी जाती है। साहित्य में जो गौरवपूर्ण पद हमारे देश में वंगमापा को प्राप्त है, वही--वल्कि उससे भी ऊंचा--यूरोप में फ्रांसीसी भापा को प्राप्त है। यही कारण है कि पहले-पहल नोवल पुरस्कार जीतने का श्रेय फ्रांसीसी कवि -रेनी फ्रांसिस श्र्मा को प्राप्त हुआ था । फ्रांसिस श्र्मा का जन्म १६ मई, १८३६ ई० को पेरिस में हुआ धा। ये एक अ्रच्छे कवि, भौर विख्यात फ्रेंच एकैडमी के सदस्य थे | इनका पूरा नाम रेनी फ्रांसिस पर्मा सुली प्रूुधों था। १६०१ ई० में जिस समय उन्हें पहले-पहल নীনল पुरस्कार मिला, उस समय फ्रांस के पत्र-पत्निकाओं में तो इनकी कृतियों की धूम मच ही गई, साथ ही इंगलैंड, जमंनी, स्कीण्डेनेविया और अ्रमेरिका के साहित्यिक प्र-पश्रिकाश्रों में भी उनको खूब समालोचनाएं, प्रकाशित हुई । चालीस वर्ष से भी श्रधिक समय से ये प्रपने समय के भ्रद्वितीय कवि माने जाते थे । फ्रांस में तो उन्हें उन्नीसवीं सदी का सर्वे- श्रेष्ठ दार्शनिक कवि माना जाता था । पुरस्कार मिलने तक इनकी रचनाओं के अनुवाद तया इनके जीवन-सम्बन्धी अन्य वातें अंग्रेज़ी भाषा में बहुत कम मिलती थीं। अब भो इनकी रचनाएं श्रंग्रेज़ी में कम ही श्रनूदित हुई हैं। फ्रेंच एकेडमी के लिए यह गौरव की बात थी कि उसके एक सदस्य को भ्रन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्दधा में सर्वप्रथम पुरस्कार प्राप्त हुमा । रैनी सुली प्रूधों अपनी माता के एकमात्र पुत्र थे । इनकी माता का तरुणावस्वा के शारम्भ में जिस पुरुष के साथ प्रेम हुआ था, उससे विवाह करने के लिए उन्हें दस यपं तक प्रतीक्षा करनी पदी, पर विवाह चन्त में उन्होंने श्रपने उसी प्रेमी से किया, दुर्भाग्ययथ वियाह के चार ही वर्ष पद्चात्‌ उनके पति का देहान्त हो गया, और दोनों के प्रेम फा भ्रवशिप्ट चिह्म केवल शिशु सुली प्रूधों रहगया। माता ते अपने इस हक- নি वेटे को बड़े लाइ-प्यार से पाला शौर उसे समुचित शिक्षा देने का प्रबन्ध कर देया ।




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