राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajasthan Puratan Granthmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ও 7.
। हु आएंगी, जो मीरांके जीवन, काव्यसाधना और भक्तिपक्ष पर भ्रभिनव प्रकाश निक्षेप
ˆ “करते हुए कितनी ही गवेषणाभ्रन्ियोंको सुल छाने परम सहायक सिद्ध होंगी;।
.... विद्याभूषणंजी एक समर्थ भूमिकालेखक भो थे। अनेक ग्रत्थकार श्रथवा
सम्पादक उनसे. भूमिका लिखवाने उपस्थित हुआ करते थे | जिस पुस्तक पर वह
भूमिका लिंखना स्वीकार कर लेते थे, उसमें केवल उपचार निभानेके लिए ही
. कलम नहीं उठाते थे। श्रपितु वह उस ग्रन्थको, सम्पादतको, विषयवस्तु और
, उसके प्राप्त अप्राप्त तथ्योंकों प्रचुर मात्रामें संगृहीत कर पूर्ण सुक्ष्मेश्षिकाके
| पर्चात् कतव्य साधने बेठते थे । यही कारण है कि ये भूमिकाएँ इतनी उत्कृष्ट
होती थीं कि सम्पादक अ्रथवा लेखकका परिश्रम निखर उठता था। काशी
. ४ नागरीप्रचारिणो सभा द्वारा प्रकाशित ब्रजनिधिग्रन्थावली और दादू, कविया,
.... गोपाल, सुन्दरदास और रघुनाथरूपक गीतांरो तथा बांकीदास पर इस प्रकारके
:. सम्पादन और लेलनकी पुष्ट-प्रौढ छाप देखी जा सकती है ।
नागरीप्रचारिणी सभा, कारीके वह् आजीवन सदस्य और प्रमुख स्तम्भोंमेंसे
ग्रन्यतमः थे । विद्याध्ूषण तो वह थे ही, विनयभूषण भी प्रथम कोटि के थे ।
... उनका अक्ृत्त्रिम सारल्य, बालकके समान निष्कलुष एवं निरुपचार था । धमै
“ “और सत्यके प्रति अ्रटल निष्ठा, सदाचारका पालन, स्वार्थत्याग, सहिष्णुता एवं
' विचारस्थैय आदि गुणसमूहोंने उन्हें अपना एकमात्र श्राश्रय मान लिया था और
.. बह स्वयं भी इन गुणपनोभें इतने तदाकार हो गये थे कि गुण प्रौर गुणीका
... ` पाथक्य देख पाना वचर कपाटोकी सन्धिकील उखाडना था ।
` “इतने दिव्य, भव्य, धीर और विद्वान होते हुए भी वह मानासक्ति और
श्रात्मविज्ञापनके पंकसे कबीरकी चादरके समान अस्पुष्ट थे । दासं कवीर जतन
से श्रोढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया'के वह उपमान थे। एक उदाहरण
.. इस प्रसंग मे उपादेय होगा ।
..... काशी तागरीप्रचारिणी सभाने विद्याभूषणजीको उनके ७५वें वर्ष पर्व पर
“ , सम्मानित करना. निश्चित किया । सभाके लिए ऐसा आयोजन करना उचित
ही था। मित्र परिचितोंको भी यह जान कर हे होता स्वाभाविक कहा जाना
चाहिए । उमंग भरे डाक्टर पीताम्बरदतत बडथ्वालने समयसे कुछ पूर्व ही विद्या-
भूषणजीको पत्र द्वारा इसकी सूचना पहुँचा दी । बस, पुरोहितजी का सरल,
০০ मिरभिमान हृदय इस मानभरे श्रायोजनके तुमुलचिन्तससे विचलित हो उठा।
` .. . जहां एमे श्रवप्तरकी प्राप्तिके लिए श्रन्य उत्कंठित रहते हैँ, वहां विद्याभूषणजीको
_. हत्कम्पी अधैयने घेर लिया । भमला, सरस्वतोके एकान्तमन्दिरमे उपासनालीन
. » पुजारीकों यह विघ्न केसे रुचिकर होता श्नौर कंसे वहु इस आऔपचारिकताके
. पीछे श्राता, जाता, लेता, देत! रहता ?
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