राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajasthan Puratan Granthmala

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Rajasthan Puratan Granthmala by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ও 7. । हु आएंगी, जो मीरांके जीवन, काव्यसाधना और भक्तिपक्ष पर भ्रभिनव प्रकाश निक्षेप ˆ “करते हुए कितनी ही गवेषणाभ्रन्ियोंको सुल छाने परम सहायक सिद्ध होंगी;। .... विद्याभूषणंजी एक समर्थ भूमिकालेखक भो थे। अनेक ग्रत्थकार श्रथवा सम्पादक उनसे. भूमिका लिखवाने उपस्थित हुआ करते थे | जिस पुस्तक पर वह भूमिका लिंखना स्वीकार कर लेते थे, उसमें केवल उपचार निभानेके लिए ही . कलम नहीं उठाते थे। श्रपितु वह उस ग्रन्थको, सम्पादतको, विषयवस्तु और , उसके प्राप्त अप्राप्त तथ्योंकों प्रचुर मात्रामें संगृहीत कर पूर्ण सुक्ष्मेश्षिकाके | पर्चात्‌ कतव्य साधने बेठते थे । यही कारण है कि ये भूमिकाएँ इतनी उत्कृष्ट होती थीं कि सम्पादक अ्रथवा लेखकका परिश्रम निखर उठता था। काशी . ४ नागरीप्रचारिणो सभा द्वारा प्रकाशित ब्रजनिधिग्रन्थावली और दादू, कविया, .... गोपाल, सुन्दरदास और रघुनाथरूपक गीतांरो तथा बांकीदास पर इस प्रकारके :. सम्पादन और लेलनकी पुष्ट-प्रौढ छाप देखी जा सकती है । नागरीप्रचारिणी सभा, कारीके वह्‌ आजीवन सदस्य और प्रमुख स्तम्भोंमेंसे ग्रन्यतमः थे । विद्याध्ूषण तो वह थे ही, विनयभूषण भी प्रथम कोटि के थे । ... उनका अक्ृत्त्रिम सारल्य, बालकके समान निष्कलुष एवं निरुपचार था । धमै “ “और सत्यके प्रति अ्रटल निष्ठा, सदाचारका पालन, स्वार्थत्याग, सहिष्णुता एवं ' विचारस्थैय आदि गुणसमूहोंने उन्हें अपना एकमात्र श्राश्रय मान लिया था और .. बह स्वयं भी इन गुणपनोभें इतने तदाकार हो गये थे कि गुण प्रौर गुणीका ... ` पाथक्य देख पाना वचर कपाटोकी सन्धिकील उखाडना था । ` “इतने दिव्य, भव्य, धीर और विद्वान होते हुए भी वह मानासक्ति और श्रात्मविज्ञापनके पंकसे कबीरकी चादरके समान अस्पुष्ट थे । दासं कवीर जतन से श्रोढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया'के वह उपमान थे। एक उदाहरण .. इस प्रसंग मे उपादेय होगा । ..... काशी तागरीप्रचारिणी सभाने विद्याभूषणजीको उनके ७५वें वर्ष पर्व पर “ , सम्मानित करना. निश्चित किया । सभाके लिए ऐसा आयोजन करना उचित ही था। मित्र परिचितोंको भी यह जान कर हे होता स्वाभाविक कहा जाना चाहिए । उमंग भरे डाक्टर पीताम्बरदतत बडथ्वालने समयसे कुछ पूर्व ही विद्या- भूषणजीको पत्र द्वारा इसकी सूचना पहुँचा दी । बस, पुरोहितजी का सरल, ০০ मिरभिमान हृदय इस मानभरे श्रायोजनके तुमुलचिन्तससे विचलित हो उठा। ` .. . जहां एमे श्रवप्तरकी प्राप्तिके लिए श्रन्य उत्कंठित रहते हैँ, वहां विद्याभूषणजीको _. हत्कम्पी अधैयने घेर लिया । भमला, सरस्वतोके एकान्तमन्दिरमे उपासनालीन . » पुजारीकों यह विघ्न केसे रुचिकर होता श्नौर कंसे वहु इस आऔपचारिकताके . पीछे श्राता, जाता, लेता, देत! रहता ?




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