मानवता की खोज | Manavta Ki Khoj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)11. ৬৮ श्री राम उवाच भाग - 5
संधि या टूटन है तो सप्लाई नहीं होगी । अवरोध होगा तो ज्ञान नहीं
होगा । हम चाहें दृष्टि से देखते रहें पर प्राप्त कुछ नहीं होगा । दर्शन शास्त्र
में भी कहा गया है- यदि व्यक्ति चिन्ता में निमग्न है, सामने हाथी खड़ा भी
है पर वह प्रवेश नहीं पायेगा । मतलब, हाथी तो वैसे भी प्रवेश नहीं करता,
यहाँ तात्पर्य है व्यक्ति सामने होते हुए भी देख नहीं पा रहा है, ऐसा इसलिये
हो रहा है क्योंकि चिन्तन की धारा अलग चल रही है, कनेक्शन नहीं जुड़ा
है । इन्द्रियगामी अवस्था से कनेक्शन कटकर आत्मारामी अवस्था से जोड़
लें तो आत्मा तक पहुँच पायेगें। उस साध्वी की चेतना तक बात चली गई
कि हिचकी आ रही है, कनेक्शन जुड़ा हुआ था । यदि हम मेन स्विच से
कनेक्शन काट दें तो लाईट नहीं जलेगी । डॉक्टर ने कहा- मैंने उसे कट
कर दिया । वह हँसती आई थी, रोती गई, बीमारी दूर हो गई । तरीका
यह था कि जब वह भीतर प्रविष्ट हुई थी तब उसने कहा था- मुझे हिचकी
की बीमारी है । मैंने कहा- तुम हिचकी की मरीज तो हो पर यह पहले यह
तो देखो कि तुम गर्भवती कैसे हो गई ? जैसे ही उसने यह सुना, कनेक्शन
कट हो गया । उसके मस्तिष्क पर दूसरा भार आ गया । हिचकी बंद हो
गई । वह रोती हुई निकली कि इज्जत कैसे बचाऊँ । ऐसा झटका कैसे
लगता है ? आप जानते हैं । श्मशान में आप जाते हैं, चिता पर लाश
जलती देखते हैं, आत्मा का संबंध जुड़ता है, प्रेशर पड़ता है, तब आपको
लगता है- संसार आसार है, एक दिन अपने को भी यहाँ आना है, ऐसी
चिता पर चढ़ना है । आत्मारामी अवस्था का स्विच दबा, कोई किसी का
नहीं है। श्मशान गये तो स्विच दूसरा था पर ज्यों ही संसार में आये, दूसरा
स्विच ऑन हो गया । श्री विवेक मुनिजी म.सा. के वैराग्य का कारण क्या
बना ? बताया कि हिम्मतसिंह जी सरूपरिया प्रकाण्ड विद्धान थे । संत-सतियों
को पढ़ाते थे । प्रसंग जो भी बना हो । मस्तिष्क का कंट्रोल नहीं रहा,
अंतिम समय में नवकार मंत्र से भी एलर्जी हो गई । उन्होंने उत्तराध्यवन
सूत्र पर थीसिस लिखी, उन्होंने अपने जीवन में नोट्स वनाये, लेख लिखे
पर अंत में ऐसी दशा । मुनिजी ने सोचा- इतने बड़े विद्वान की यदि ये
हालत ह, तो हमारी हालत क्या हो सकती है ? वताइये संसार मं रेस कीन
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