उर्दू की सर्वश्रेष्ठ कविता | Urdu Ki Sarvseth Poetry

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कन्हैयालाल - Kanhaiyalal

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कृष्णचंद्र - Krishnachandra

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राजेंद्र सिंह बेदी - RAJENDRA SINGH BEDI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेक्सीनेटर १६ पांव-तले रौद सकते है । तुम हमे नही पहचानते । हा हा हा “ओर मैं पागल हो जाता हूँ, और सोचता हूँ कि जब तक ये चमकते हुए बुर्ग मौजूद है, मेरे मन को शाति नही प्राप्त हो सकती | बहुधा मेरे मन मे विचार उठता है कि एक-दो रुपये कौ वारूद लेकर मँ रात के समय इस पुराने महल के निकट जाऊँ और वारूद लगाकर भक से इन वुर्जों को उडा दूँ, तो ** तो'' 'लेकिन मैने हर बार इस विचार को मन मे ज्ञोर से दवा दिया है। ओर वेक्सीनेटर ने रहस्यमय लहजे में रशीद की ओर श्रुककर कहा-- “लेकिन एक दिन मै इस काम को अ्रवश्य पूरा करके चोदा 1 दा




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