हेमचन्द्राचार्या जीवनचरित्र | Hemchandraacharya Jeewancharitra

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Hemchandraacharya Jeewancharitra by कस्तूरमल बांठिया - Kastoormal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) किया हुआ मलुस्मृति का अनुवाद उसी अन्थमालछा में सम्‌ १८८१५ में प्रकाशित हुआ था । उस युग के अनेक पाश्चात्य पण्डितों से वह हिन्दूधर्म की आधार पुस्तकों ( सोर्स बुक्‍्स ) के निर्माण काल के विषय में विभिन्न मत रखते थे । बह उन्हें उनकी अपेक्षा अधिक प्राचीनता देते थे । सस्क्ृत साहित्य के अध्ययन से उन्होंने अपना ध्यान शिलालेखों के अध्ययन की ओर छगा दिया और उनके ही फलस्वरूप वे भारतीय इतिहास के हिन्दू काल का कालक्रम प्रकरण निश्चित कर सके | उन्होंने इस विषय पर दे७ छेसव 'इडियन एटीक्वेरी' में प्रकाशित किए और ४२ 'एपीग्राफिका इडिका' में । भारतीय ऐतिहासिक अभिलेखों की व्याख्या करने का काम अति महन अध्ययन के पश्चात्‌ ही उन्होंने हाथ में लिया था । लिपिशाख, न कि ऐतिहासिक शिलालेख, ही डा० बूहूर की अत्यन्त रुचि का विषय था। (भारतीय ब्राह्मी लिपि! और “भारतीय लिपिशास्त्र! ये दोनों उनके महान्‌ ग्रंथ हैं । भारतीय पुरातत्व, शिलालेख ( एपीग्राफी ), साहित्य और भाषाविज्ञान सभी में उनकी भारी देन है । उनका विश्लेषण और उनकी ब्याख्या, उनके अध्यवसायी अध्ययन और पाडित्य की साक्षी देते हैं । बह भारतीय साहित्य-रत्नों की वह सूची बनाने में जिसका प्रारम्भ श्री विहटले स्टोक्स ने किया था, अत्यन्त ही सफल हुए थे । जब वह महत्व की हस्तप्रतियों की खोज से थे, उनकी आँखे प्राचीन शिलालेखों की ओर भी खुली रहती थी । ईसा पूर्वं तीसरी शती के हमारे महाराजा अश्लोक के शिलालेखों का आकलन उन के एवं श्री एम सेनार्ट दोनों के सयुक्त सर्वप्रथम परिश्रम का ही परिणाम है । भारतीय धर्मो के इतिहास को बूहर की देन दूसरी महत्वपूर्ण सेवा उन्होंने भारतीय धर्मों के इतिहास ज्षेत्र में की । जैनधर्म के सम्बन्ध की कुछ हस्तलिखित;प्रतियों की उनकी खोज ने विद्वानों के लिए जैनधमं के अध्ययन का मागं प्रशस्त कर दिया। उन्होंने ५०० से कुछ अधिक जैन प्राकृत हस्तप्रतियाँ खोज ही नहीं लीं, बढ्कि उन्हें खरीदकर अपने




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