हेमचन्द्राचार्य जीवनचरित्र | Hemchandraacharya Jeewancharitra

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Hemchandraacharya Jeewancharitra  by कस्तूरमल बांठिया - Kastoormal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३ ) किया हुभा मनुस्छति का अनुवाद उसी ग्रन्थमाला में सन्‌ १८८६ में प्रकाशित हुमा था । उस युग के अनेक पाश्चात्य पण्डितों से वह हिन्दूधम की आधार पुस्तकों ( सोरस बुक्स ) के निर्माण काक के विषय में विभिन्न मत रखते थे । वह उन्हें उनकी अपेक्ता अधिक प्राचीनता देते थे । संस्कृत साहित्य के अध्ययन से उन्होंने अपना ध्यान दिलारेखों के अध्ययन की ओर छगा दिया और उनके ही फलस्वरूप वे भारतीय इतिहास ॐ हिन्दू कार का कालक्रम प्रमाण निशिचत कर सके । उन्होंने इस विषय पर ३५ लेख 'इडियन एंटीक्वेरी में प्रकाशित किए और ४२. 'एपीप्राफिका इंडिका' में । भारतीय ऐतिहासिक अभिलेखों की व्याख्या करने का काम अति गहन अध्ययन के पश्चात्‌ ही उन्होंने हाथ में लिया था । छिपिशास्त्र, न कि ऐतिहासिक झिलालेख, हो डा० बूहर की अत्यन्त रुखि का विषय था । (भारतीय ब्राह्मी लिपि और “भारतीय लिपिशाखर' ये दोनों उनके महान्‌ ग्रंथ हैं । भारतीय पुरातत्व, शिलालेख ( एपीग्राफी ) , साहित्य और भाषाविज्ञान सभी में उनकी भारी देन है । उनका विश्ठेषण और उनकी याख्या, उने अध्यवसायी अध्ययन और पांडिस्य की साक्षी देते हैं । चह भारतीय साहित्य-रत्नों की वह सूची बनाने में जिसका प्रारम्भ श्री चिहटने स्टोक्स ने किया था, अस्यन्त ही सफल हुए थे । जब चह महत्व की हस्तप्रतियों की खोज में थे, उनकी आाँखें प्राचीन शिलालेखों की ओर भी खुली रहती थी । ईसा पूर्व तीसरी झती के हमारे महाराजा अशोक के शिलालेखों का आकलन उन के एवं रौ पुम. सेनारं दोनो कं संयुक्त सर्वप्रथम परिश्रम का ही परिणाम है । भारतीय धमो फे इतिहास को बृहर की देन दूसरी महत्वपूर्ण सेवा उन्होने भारतीय धर्मो के इतिहास रत्र मे की। जैनधर्म के सम्बन्ध की ङु हस्तकिखितः परतिर्यो की उनकी खोज ने विद्वान के लिए जेनधघर्म के अध्ययन का मार्ग प्रशर्त कर दिया । उन्होंने ५०० से कुछ अधिक जेन प्राकृत हस्तप्रतियाँ खोज ही नहीं लीं, बढिक उन्हें खरीदकर अपने




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