हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास | Hindii Saahity Kaa Aalochanaatmak Itihaas

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Hindii Saahity Kaa Aalochanaatmak Itihaas by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ हिन्दी साहित्य का भालोचनारमक- इतिहास २२५० पृष्ठो मेँ श्रपना 'विनोद' लिखा है । इसर्मे कविधों के विवरणों के साथ-साथ साहित्य के विविध अंगों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । भ्रनेक कवि जो भज्ञात थे प्रकाश में लाये गए हैं श्रौर उनके साहित्यिक महत्त्व का मूल्य आँका गया है। कवियों की श्रेणियाँ बनाई गई हैं और उन श्रेणियों में कवियों का वर्गीकरण किया गया है । विनोद के घारों भागों में ४५६६१ कवियों का वर्णन है, किन्तु बीच में भ्रन्य कवियों का पता मिलने पर उनके नम्बर “बे से कर दिये गए हैं ।” इस प्रकार 'मिश्रबन्ध विनोद” में ५००० से श्रधिक कवियों का विवरण मिलता है। यद्यपि कवियों के काव्य की समीक्षा प्राचीन काल के आदशों के प्राधार पर की गई है, पर उनकी विवेचना में हम श्राधुनिक दृष्टिकोण नहीं पराते। जीवन की श्रालोचना, कविका सन्दे, लेखक की अन्तदुष्टि श्रौर भावों की श्रनुभूति भ्रादिके भ्राधार पर उसमें कवियों भौर लेश्षकों की आलोचना नहीं है। भाषा भी भ्रालोचना के ढंग की नहीं है, किन्तु साहित्य के प्रथम इतिहास को विस्तारपूर्वक लिखने का श्रेय मिश्रबन्धुओ्रों को श्रव््य है 1 .उन्होंने अपने ग्रन्थ “हिन्दी नवरल' नवरत्न (सं १९६७) मे नौ कवियों की विस्तृत समालोचना की है । उसमे हम कवियों का यथेष्ट निरूपण पाते हैं | इस ग्रन्थ का चौथा संस्करण जो सचित्र, संशोधित और सम्बद्धित है, सं० १६६१ में प्रकाशित हुभा । संवत्‌ १६७४ में पं० रामनरेश त्रिपाठी द्वारा लिखित 'कविता-कौमुदी' ग्रन्थ, प्रकाशित हुआ | इसमें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पहले तक के कविता-कोमृदी ८९ कवियों का जीवन-विवरण, उनकी कविता के साथ दिया गया है । इसमे कवियों की भ्रालोचना न होकर केवल परिचय मात्र है।सं० १६८३ में इसका दूसरा भाग प्रकाशित हुआ जिसमें ५८६ ग्राधुनिक लेखकों श्रौर कवियों का विवरण है । इस प्रकार 'कविता-कौमुदी' के दोनों भागों में १३८ कवियों का विवरण है । संवत्‌ १६७४ में एडवित ग्रीब्स महाशय ने 'ए स्केच भाव्‌ हिन्दी लिट्रेचर नाम से हिन्दी साहित्य का एक इतिहास लिखा । इस ए स्केच भ्राव्‌ ११२ पष्ठों की पुस्तिका में लेखक महोदय ने उपयुक्त सभी हिन्दी लिटूरेचर पुस्तकों से पुरी सहायता ली है) इन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास के पाँच विभाग किये हूँ। धामिक काल को दो भागों में विभाजित कर दिया है श्रौर हिन्दी के भविष्य पर एक सुन्दर श्रध्याय ` इनौ कमि निःनलिखित हैं :-- तुलसीदास, यूरदास, देष, विहारो, त्रिपाठी-बन्तु ( भूषण, मंतिराम ), केशव, कबोर, चन्द भोर दरिश्वन्द्र |




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