मध्यकालीन हिंदी काव्यभाषा | Madhy Kalin Hindi Kavya Bhasha

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Madhy Kalin Hindi Kavya Bhasha by रामस्वरूप चतुर्वेदी - Ramswsaroop Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बात्यमाधा और विद प्रक्रिया. १७ एक निश्चित अथ को व्यवत न करके उस जथ की व्यापकता के अतमन नान वाटे अनेक भिन्त नुत्त सावा का व्यक्त करत है एके विस्व दस पारस्परिक मानवीय सदध की रुक दिगा विनेपम बइ स्पिनिया का बांध हा सकता है--इन जर्थों की दिया एक रहेगी, पर जनुमूतिगत सघवता वी दप्टि से उनम अतरहोगा । इस स्थिनि कौ तुलना नय मापाधितान के वहुचचित विमावन ध्वनिग्राम” (फोनीम) में वी जा सकता है। ध्वनिग्राम उत बहतन्सी मिलती जुलती घ्वनिण्ग के समूह को कह॒त हैं, जिनका उच्चारग भेद यत्रो वी सहायता से पकण जा सकता है पर वास्तविक प्रयाग के समय उनके स्वरूप मं हम विवेक नहा करत। व्‌ हिंदी मापा मं एक ध्वनिग्नाम है जिसके अतगत क क्षेत्र बी मिस्नी-जरती बनके घ्वनिया था जाती हैं। इसीलिए क घ्वनिभ्राम उन समी घ्वनिया का प्रतीक हात हुए हमारी वणमाला म कवर एक ही वण के रूप मे स्थान पाता है। अससे स्पष्ट हा जाता है कि घ्वनिया अगणित हाती हैं और उन सज के सुनिश्चित स्वरुप का हम नहा जानत। हम “वनिग्रामा का व्यवहार म लात हैं। इसी प्रकार न्ता बा एक वन्त मूनिदिवत जथ नहा टाना। हम कट्‌ स्रत हैं कि बाद भी वस्तुत द्दग्राम हात हैं कर मित्ते-जुजत अर्थोका योध करान वाल अर्थो कौ एक्‌ श्रेणी न्यक्त বন ভাই | ইন सीमित जौर जपूण उपकरणा से हम काव्यमापा के शाला म एक गौर एक टी, निश्चित भाव का व्यक्त करन का दावा कसे कर सक्त है? हम वस्तुत एक अनुमूति को नरी बरन्‌ उसके व्यापक स्वरूप का हा सप्रेषित वरन हैं ॥ मापा की इस सीमित दवित क कारण स्वय रचनाकार के लिए भी जनक अनुभूतिया कई वार लपन म बहून निर्दिष्ट नहा हा पाता। डर॒ट क॑ उपयास वित्या' की एक पात कहती है ‹गायद एकदम अप्राप्य हान कै कारण ही वह्‌ इतना जचिक्‌ प्रेमास्पद था इनं बाना का ठीक-टीक कहना मुश्वि० है। एक दी शद प्रेमः या 'प्रेमास्पद' का प्रयाग प्राणिया वी अनक क्स्मा के 7िए करता पडता है।” इसी रचना क णक वक पातका कहनादै भाषा ल्‍ूखक का सधय इसे जतिरिबत क्या है मि चह एक ऐसे माध्यम का ठीर-टीन उपयाग कर जिसकी मौतिव जपूणता स बह परिचित है। मापा की प्रद्नति अपन-आप म अमूतन कौ है। नट जवन सिमी मून वस्तु अथवा स्थिति व अमूत सदत मर हात है । इस प्रसार सारी मापा जमतन मौर प्रनीकन का क्रिया रै1 यह्‌ प्रक्रिया जीवत यौर गतिनीर रह इनम लिए भाषा वा साधारण प्रयागकर्त्ता चिनित नही रहता जब कि कवि का सपूण সপ




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