आँखों में | Aankhon Me

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Aankhon Me by श्री हरिकृष्ण प्रेमी - Shree Harikrishn Premee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रवश्य प्लावित कर देगा, यह कई सरस साहित्यिक ऋषियों का आशीर्वाद है । द देने के लिए. “प्रेमी” के पास केवल एक संदेश है, जो उनकी पंक्तिपंक्ति से--अक्षर-अक्षर से--फूट रहा है । संदेश नया नहीं है | सारा _ संसार इससे परिचित है। फिर भी, भ्रपरिणित है। अपने,दी हंदय की बात जिससे इस सुन्दर रूप में निकले उस हृदय को कौन पीडित हृदय प्यार न करेगा ? “प्रेमी” की ल्लोक-प्रियता का रहस्य भी इसी में है ! एक बीस-इक्कीस वर्ष के सादक कवि-हृदय से जितनी आशा की जा सकती है, उससे कहीं श्रध्ििक सद, कहीं अधिक रस, कहीं अधिक पीदा, ओर क्या कहें, कहीं अधिक करुणा “प्रेमी” रसिकों के प्यालों में ढाल दिया करते हैं । साष्ित्योपवन्‌ के मदान्ध गजों द्वार यदि यह सरस सुमन खिलते ही कुचल न दिथा गया, सो कौन कह सकता है कि इसके काध्य-रस पर, भविष्य मे, असंख्य रसिक भौरे न ललचाएँगे ?, यदि श्रादि कवि सहपि वाल्मीकिं का विशालं हृद्य करणा के श्राक- स्मिक श्राघात से एक ध्यथा-भरे अभिशाप के रूप प्रहित होकर शरखिल विश्व को प्लावित कर सकता है, 'तो यह भी संभव नहीं, कि प्रेमी का कोमल हृदय करुणा, उम्माद और बेदना के त्रिशूल को आ5- पहर अन्तरतस के आंचत्न में पालते हुए भी सहृदयों के हृदयों में एक हलकी-सी दीस उत्पन्न न कर सके । ;




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