गोमती के तट पर | Gomati Ke Tat Par

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Gomati Ke Tat Par by भगवतीप्रसाद वाजपेयी - Bhagwati Prasad Vajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जब बह वापस नरा १२ गोमती के तट पर द बमान ने उपेक्षा की हँसी हंसने हाए कह दिया -- तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है | तुमको पता ही नहीं कि रूसी संस्कृति में शक्ति ही सौन्दर्य को देवी মাপা আলাই। इस प्रकार विचार-बिनिमय करने हुए दोनों विशाल चित्राधार লী লামনাতনন में शाकार भीतर चलने लगे । विज्ञान बायी और एक লিঙ্গ দা লাম টিন गया और बसत कुछ সাম অনুদান আসন্ন चित्रों को देखने लगा। एक बद्ध किसान का चित्र देखकर बह विशेष आकषपित हुआ | उसे विज्ञान को दिखाने की इच्छा से वह उसकी और जो मुड़ा तो क्‍या देखता है कि बह उसका साथ छोड़कर चौथी पंक्ति में लगे एक चित्र की ओर চিত गड़ाये खड़ा है। लपककर वह अभी उसकी ओर घला हो था कि उम्की दृष्टि अगली पंक्ति के एक चित्र के पास एकत्र कछ यतालियों पर जा पढ़ी। वह पहले कुछ ठिठका, परनन्‍्त फिर सम्हलकर विज्ञान की श्रीर बढ़ गया। उसके हाथ-मे-हाथ डाले হা, तो यूततियों को ओर संकेत करने ঢা? নীল उठा-- इस শিপ লালা क्या विशेषता है, जो यहां इतना भीड़ लग रही है । चलो, जरा इसे भी देख लें । चित्र के पास परेंचकर बसंत ने उसी पर एक सरसरी दृष्टि डाल दी, फिर सहसा उसको दृष्टि युवती-समुदाय पर जा पड़ी । कुतूहल के साध उसने देखा-नाक यूबती पेंसिल से सामने के चित्र का स्क्रेत ले रही है। अतः युवतियों की ओर से अपनी रप्टि हटाकर बह उसी चित्र को ध्यान से देखने लगा। क्षण-नर बाद फिर वह दूसरे चित्रों की शोर चला गया | इधर-उधर के चित्र देखने में उसको एक ही युवती को अनेक बार देखने का अवसर मिल गया । युवती की देह-यप्टि की मनोहर गठन और हरूप-राशि की विमोहक छटा केनखियों से निहार-निहारकर वह अतिशय मुग्ध और व्याकुल- सा हो उठा । चित्रों को देखने रे उसका मन उचटने लगा । तबतक विज्ञान ने एक ओर भीड़ देखकर कह दिया--“तुम यहीं




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